लघुकथा

उपहार

आज शकुंतला बहुत व्यस्त थी, हो भी क्यों न, उसकी इकलौती बेटी पुलिस अफसर रंजना की शादी थी।  सारा शहर बाराती बनकर दरवाजे पर आने को आतुर था। ऊपर से खुशी से लबरेज होने के बावजूद मन तड़प रहा था, अश्रु नैनो के द्वार पर छुपे थे। कैसे रहेगी अपनी बिटिया के बिना, वह तो शहर से बहुत दूर मुम्बई जाने वाली है।

तभी रंजना पार्लर से मेकअप करा कर लौटी और पूछने लगी , “बताओ मम्मा, मैं कैसी लग रही हूं।”

“चाँद का टुकड़ा लग रही है, तू।”

“वाह, मम्मा, आंखों में आंसू भरकर कह रही हो, हंसकर बोलो तभी मानूँगी।”

बाहर हॉल में गाना बज रहा था, खुशी खुशी कर दो बिदा, रानी बेटी राज करेगी …

बारात आने में कुछ घंटो की देरी थी, वह बेटी का बक्सा फिर से संभालने लगी। और हर समान सहेजते हुए, यादे उसे तीस वर्ष पहले की एक यात्रा में घुमाने लगी। वह और राजेश वैष्णो देवी के दर्शन करके वापस आ रहे थे। दिल्ली स्टेशन में बैठी थी, तभी अनाउंसमेंट हुआ ट्रेन बहुत लेट चल रही, 10 घंटे बाद आएगी। बहुत कोफ्त हो रही थी, उस वक़्त गाड़ियां अक्सर लेट हो जाती थी। शकुंतला अकेली ही बैठी थी राजेश प्लेटफार्म पर घूम रहे थे। एक छोटी सी बच्ची आकर शकुंतला को पकड़कर रोने लगी, मेरी माँ कहीं खो गयी है, तुमने कहीं देखा क्या? ये नयी वाली माँ मेरे साथ आई थी, कि घूमने चलो, और पता नही कहाँ गयी।

बहुत प्यारी बच्ची थी, और शकुंतला दुखी हो गयी। राजेश को बुलाकर दोनो उस बच्ची को स्टेशन मास्टर के पास ले गए, अन्नोउसमेन्ट हुआ, पर कोई भी बच्ची को लेने नही आया। दोनो ने उसको खाना खिलाया, पांच घण्टो तक वह साथ बैठी रही। शंकुन्तला विवाह के दस वर्ष बाद भी निसंतान थी, पता नही क्यों उसे लग रहा था, ईश्वर की कुछ मंशा है, उसने राजेश से पूछा, “अभीतक कोई नही आया, अगर ऐसा रहा, तो हम क्या करेंगे।”

“चिंता क्यों करती हो, स्टेशन मास्टर के पास छोड़ देंगे।”

“क्या इसे हम नही ले जा सकते।”

“चलो पूछते हैं।”

स्टेशन मास्टर ने कहा, “आप अपना पता, नंबर सब लिखवा दीजिए कोई पूछताछ होगी तो काम आएगा।”

और छोटी सी बच्ची को वैष्णो देवी का उपहार समझकर दोनो घर ले आये।

और रंजना को कानूनी विधि से दोनो ने अपनी लाडली बेटी का दर्जा दिया। उसको बहुत लाड़ प्यार से पाला, रंजना तीक्ष्ण बुध्दि की होशियार विद्यार्थी थी। समय और भाग्य ने उसको आज कहाँ से कहाँ पंहुचा दिया। शादी से एक महीने पहले राजेश ने शकुंतला से कहा, “अब तो बिटिया को बता दो, कि वह हमें कैसे मिली।”

“मेरी हिम्मत नही, मैं तो बोल ही नही पाऊंगी।”

तभी रंजना पीछे से आकर रोते हुए बोली, मम्मा पापा कुछ मत बोलो, पांच वर्ष पहले मैंने मम्मा की डायरी में सब पढ़ लिया था। आप दोनो तो मेरे लिए भगवान से भी बढ़कर हो, सब जानकर तो आपकी इज्जत और बढ़ गयी है।

विचारों की आंधी रुकी जब किसी ने जोर से कहा, अरे यहां क्यो बैठी हो,बारात चौराहे तक पहुँच गयी है। शकुंतला जल्दी से तैयारी में लग गयी।

— भगवती सक्सेना गौड़

*भगवती सक्सेना गौड़

बैंगलोर

One thought on “उपहार

  • *चंचल जैन

    दिल को छूती लघु कथा।

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