कुण्डली/छंद

पावस के सवैया

(1)

मन को तन को,नव जीवन दे,बरसात बहार सुहावन है।

जब नीर हमें सबको सुख दे,तब गीत जगे मनभावन है।

बरसे बदरा हम भीग गए,पर नीर सदा अति पावन है।

सुख की बगिया मन फूल खिलें,बरसे सँग नेह सुसावन है।

(2)

मन भीग गया,तन भीग गया,अब गीत जगा,यशगान नया।

बरसा बहकी,बरसा चहकी,हर एक कहे वरदान नया।

 बिजली चमकी,बिजली दमकी,बरसे अब तो अहसान नया। 

हमको तुमको,इनको उनको,भर देे,नव दे,अब प्रान नया।

(3)

हम जीत गए,हम प्रीत भए,अब तो हर ओर लुभावन है।

कितना सुखदा,हर ली विपदा,नव आस सजा यह सावन है।

 अब रात गई,वह बात गई,नव रीति यहां अब आवन है।

बरसे बदरा,हर ओर बही,जल की रसधार सुहावन है ।

(4)

अब गीत लबों पर गूँज रहा,यह है महिमा अति मौसम की।

परदेश गए बलमा जिनके,उनको अब आग पले ग़म की।

 नव माप लिए,नव ताप लिए,बदरा हर बात सदा दम की।

बदरा कितने,अनुराग भरे,बदरा कर बात सदा सम की।

  (5)

बदरा हमको सुखधाम लगें,बदरा हमको वरदान लगें।

बदरा हमको बलवान लगें,बदरा हमको यशगान लगें।

बदरा हमको नव नीति लगेें,हमको नित ही वह आन लगें।

बदरा हमको जल देकर के, हमको पावन अरमान लगें।

 — प्रो (डॉ) शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल-khare.sharadnarayan@gmail.com