मुक्तक/दोहा

राखी के दोहे

राखी में तो धर्म है,परंपरा का मर्म।

लज्जा रखने का करें,सारे ही अब कर्म।।

राखी धागा प्रीति का,भावों का संसार।

राखी नेहिलता लिए,नित्य निष्कलुृष प्यार।।

राखी बहना-प्रीति है,मंगलमय इक गान।

राखी है इक चेतना,जीवन की मुस्कान।।

राखी तो अनुराग है,अंतर का आलोक।

हर्ष बिखेरे नित्य ही,परे हटाये शोक।।

राखी इक अहसास है,राखी इक आवेग।

भाई के बाजू बँधा,खुशियों का मृदु नेग।।

राखी वेदों में सजी,महक रहा इतिहास।

राखी हर्षित हो रही,लेकर मीठी आस।।

राखी में जीवन भरा,बचपन का आधार।

राखी में रौनक भरी,देती जो उजियार।।

भाई हो यदि दूर तो,डाक निभाती साथ।

नहीं रहे सूना कभी,वीरा का तो हाथ।।

यही कह रहा है ‘शरद’,राखी का कर मान।

वरना होना तय समझ,मूल्यों का अवसान।।

राखी में आवेश है,राखी में उल्लास।

राखी है संवेदना,राखी है उत्साह।।

राखी दूरी को हरे,बिखराती है नूर।

कर देती संबंध के,वह सारे दुख दूर।।

मत कर तू अवमानना,राखी पावन गीत।

रिश्तों को है जोड़ती,राखी बनकर मीत।।

 — प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल-khare.sharadnarayan@gmail.com