कविता

मानवीय सुखचैन सभ गंवाया है

आधुनिकीकरण के लालच में 

सृष्टि के मानव ने सभ गंवाया है 

इकोसिस्टम को नष्ट करके 

मानवीय सुखचैन सभ गंवाया है 

प्राचीन संस्कृति का युवाओं में प्रसार करना है

प्राकृतिक संसाधनों को बचाना है

विश्व में भारत को नंबर वन बनाना है

आत्मनिर्भर भारत करने हर उपचार अपनाना है

भारत में उत्पादित चीजें अपनाना है

इसी अस्त्र से विश्व राजा का ताज़ पहना है

स्टार्टअप इनोवेशन को आगे बढ़ाना है

हमें शक्तिशाली राष्ट्रीय अभियान चलाना है 

सर्वशक्तिमान मनीषियों को चेताना है

हमें अपनी नदियों तालाबों को तात्कालिक 

जीवनदायिनी भावना से बचाना है

चिर परिचित भारतीय संस्कृति को अपनाना है 

नदियों तालाबों को सदैव ही उनकी 

जीवनदायिनी शक्ति के लिए सम्मानित किया है 

उस सम्मान को हम मनुष्यों ने 

जी तोड़ कोशिश कर बचाना है 

— किशन सनमुख़दास भावनानी

*किशन भावनानी

कर विशेषज्ञ एड., गोंदिया