गीत/नवगीत

मुंबई लोकल

मुंबई की लोकल, ट्रेन का

सफर एकदम , है निराला ।।

क्या अंदर, क्या बाहर
सब जगह, भारी भीड़ है

पहले तो चढ़ना, ही मुश्किल
उतरने का मसला,और गम्भीर है

ऊपर से धक्का,मुक्की का आलम
चलो जी स्टेशन, आला रे आला।
मुंबई की लोकल, ट्रेन का
सफर एकदम , है निराला।।

सुबह चार , बजे से ही

आवागमन , शुरू हो जाता
रात एक बजे, तक जो
लगातार, चलता ही जाता ।

ट्रेनें दौड़ती, तीव्र गति से

अनुशासन भी है , तारीफ़ वाला।
मुंबई की लोकल‌‌‌, ट्रेन का
सफर एकदम, है निराला ।।

प्रबंधन सबमें ही, भरा पड़ा है
कोई ऐसे तो कोई, कैसे खड़ा है
चढ़ने से पहले, उतरने की चिंता
सबकी रक्षा करो, तुम्ही परमपिता

यहां धक्का-मुक्की से तो
पड़े सबका, रोज ही पाला
मुंबई की लोकल‌‌‌, ट्रेन का

सफर एकदम, है निराला।।

सबके चेहरों पर,खिली मुस्कान है
जो चढ़ पाये,मानो जीता जहान हैं
बाडी मसाज तो,अंदर हो जाती
पर उतरते समय, नानी याद आती

यहां हर कोई, चुस्त दुरुस्त है
और हर कोई, जिगर वाला
मुंबई की लोकल‌‌‌, ट्रेन का
सफर एकदम , है निराला।।

महिलाओं का, डिब्बा हो

या वरिष्ठ नागरिकों,का आशियाना
सब ही खचा-खच, भरे रहते
आपसी मिलन का, यही ठिकाना

भजन, आरती, चालीसा

राजनीति का, है बोलबाला
मुंबई की लोकल‌‌‌, ट्रेन का
सफर एकदम, है निराला।।

डब्बे में तिल भर की, जगह नही है
लेकिन क्या करें, जल्दी बड़ी है
बड़ी संख्या में, लोग बाहर लटकते
रोजी रोटी के, लिए संघर्ष करते

रोज मर्रा की , इस भागदौड़ ने
जीवन का रुख, ही बदल डाला
मुंबई की, लोकल‌‌‌ ट्रेन का
सफर एकदम , है निराला।।

कम ही दिखती है, उदासी, बेबसी
परेशानियों के संग,नाचती है खुशी
लोकल हमारी, लाइफलाइन है
आमची मुंबई, की पहचान है।

सारे सुख दुख हम, यहीं बांट लेते
करते न हम , कोई गड़बड़ झाला
मुंबई की लोकल, ट्रेन का
सफर एकदम, है निराला।।

मुंबई की लोकल, ट्रेन का
सफर एकदम, है निराला।।

— नवल अग्रवाल

नवल किशोर अग्रवाल

इलाहाबाद बैंक से अवकाश प्राप्त पलावा, मुम्बई