गीतिका/ग़ज़ल

गजल

बैठ पहलू में मेरे कुछ तो शरारत हो जाये।
तू झुका ले जो नज़र मुझको मुहब्बत हो जाये।।

फिर न रह जाए अधूरी मेरी ख़्वाहिश साजन।
कर लूं दीदार जो तेरा तो इबादत हो जाए।।

मुझको मिल जाए खुदा कर लूं इबादत तेरी।
बाद मुद्दत के मेरे दिल को भी राहत हो जाए।।

तू उठाए जो नज़र मय से भरी अपनी ये।
सच कहूं मेरे सनम मुझसे बगावत हो जाए।।

डूब जाऊं तेरी नज़रों में भुला दूं जन्नत।
भूल जाऊं न ख़ुदा फिर कि क़यामत हो जाए।।

इन निगाहों में बसे हैं मेरी दुनिया सारी।
बंद हो जायें जो पलकें यूं नज़ाकत हो जाए।।

— प्रीती श्रीवास्तव

प्रीती श्रीवास्तव

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