कविता

दोहरा चरित्र

कल रात यमराज मेरे पास आया
मुझे सोते से जगाया और कहने लगा
प्रभु! मैं आपसे पूछता हूं
आखिर कब तक आप रावण का पुतला जलाते 
बिल्कुल भी नहीं शरमाओगे
और खुद को भरमाते रहोगे।
जो सदियों पहले मर गया हो
श्रीराम के हाथों मरकर तर गया हो
उसका पुतला जलाकर आप क्या दिखा रहे हो
सच तो यह है कि रावण की बात तो छोड़िए
उसके पुतले से भी खौफ खा रहे हो।
अभी तक तय थरकर कांप रहे हो,
तभी तो रावण केपुतले को भी 
भीड़ की आड़ लेकर जला रहे हो।
कब तक आप श्रीराम जी को गुमराह करोगे?
अपने भीतर के रावण के बारे में कब विचार करोगे?
या अपने रावण को सिर्फ छुपाए रहोगे।
रावण का नहीं सिर्फ रावण के पुतले का दहन 
और अपने मन के रावण को
यूँ ही पाल पोस कर बड़ा करते रहोगे?
और अपनी पीठ थपथपाते  रहोगे
विजयादशमी पर ऐसे ही पुतले जलाते रहोगे
अब तक आखिर दोहरा चरित्र दिखाते रहोगे? 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921