कविता

हमशक्ल

अभी अभी एक साया मेरे पास आयाअपने साथ चलने का फरमान सुनाया,मैंने पूछा तुम कौन हो भाया?उसने तीसरी दुनिया का नाम बतायामैं भी अकड़ गयाखुद को बड़ा सयाना समझता हैमेरे यार की जगह तुम कब नियुक्त हो गयासाया हड़बड़ाया कौन यार किसका यार?अच्छा बच्चू अब समझ में आयातू मेरे यार का हमशक्ल बनकर आया,तू ठहर मैं अपने यार को बुलाता हूंउससे पूछता हूं फिर तेरे साथ चलता हूं।फिर भी मैं यूं ही नहीं जाऊंगाबिना स्थानांतरण पत्र देखेमैं तेरी बात पर विश्वास नहीं कर पाऊंगा,पहले अपनी फाइल दुरुस्त करुंगा,बड़ी मैडम से रिलीविंग आर्डर लेकर हीतेरे साथ चल पाऊंगा।क्या पता कल तू मुकर जायया किसी लालच में बिक जाय और फिर से मुझे लेने आ जाय,विश्वास की आड़ में गच्चा दे जाय।यह सुनकर साया घबड़ा गयासोचने लगा मेरा तो दांव उल्टा पड़ गया,तब तक मेरा यार आ गयाउसे देख साया दुम दबाकर भाग गया।मैंने उसे पूरा हाल कह सुनायामेरा यार माथा पीटकर बैठ गया,अब उसका भी हमशक्ल धरती पर आ गयाअच्छा हुआ प्रभु मैं समय पर आ गया,और बड़ी बदनामी से भी बच गया।

*सुधीर श्रीवास्तव

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