गीत/नवगीत

गीत

अम्बर के सिरताज परिंदे।

भरते जब परवाज़ परिंदे।

            डुबकी में संगीतक लोरी।

            विहम लगाते चोरी चोरी।

            दरिया भीतर साज परिंदे।

            अम्बर के सिरताज परिंदे।

इक दूूजे से कोई ना रूठे।

सब धर्मो से सच्चे ऊंचे।

रब्ब जैसी अवाज़ परिंदे।

अम्बर के सिरताज परिंदे।

            इन्द्र धनुष पंखों में भर के।

            रंग अस्तित्व स्थापित कर के।

            सिर पर पहने ताज परिंदे।

            अम्बर के सिरताज परिंदे।

घर निर्माण में उत्तम शिल्पी।

बंदे से सर्वोतम शिल्पी।

कर्मठता के काज परिंदे।

अम्बर के सिरताज परिंदे।

            इन्हों में भी आदत होती।

            मोह ममता के बाबत होती।

            हो जाते नाराज़ परिंदे।

            अम्बर के सिरताज परिंदे।

ना सीमा ना धर्म ना जाति।

रात दोपहर या प्रभाती।

धरती के स्वराज परिंदे।

अम्बर के सिरताज परिंदे।

            मुश्किल होती इन की भाषा।

            समझें दुख सुख आस निराशा।

            देते जन आवाज़ परिंदे।

            अम्बर के सिरताज परिंदे।

बंदे से अधिक स्याने।

देते नहीं है ग्लानि ताने।

लेते नहीं है दाज परिंदे।

अम्बर के सिरताज परिंदे।

            आज़ादी के भीतर रहते।

            मिलजुल कर सब दुख सुख सहते।

            होते नहीं मोहताज़ परिंदे।

            अम्बर के सिरताज परिंदे।

इन से उत्पन्न उड़न खटोले।

लाखों मील परों से तोले।

यात्रा के समराज परिंदे।

अम्बर के सिरताज परिंदे।

            इन से ही सुर संगीत बना।

            इन्हों ने सभ्याचार जना।

            संस्कृति का आग़ाज़ परिंदे।

            अम्बर के सिरताज परिंदे।

बालम सुख को बांटते जाते।

मुश्किल में भी नहीं घबराते।

दुख का रखते राज़ परिंदे।

अम्बर के सिरताज परिंदे।

— बलविंदर बालम

बलविन्दर ‘बालम’

ओंकार नगर, गुरदासपुर (पंजाब) मो. 98156 25409