कविता

स्व की पहचान

अक्सर स्वयं में खो जाते हैं

पूरे वर्ष की विशेष घटना याद आते हैं

कभी बच्चों की चिंता कभी

परिवार की या फिर समाज की 

चिंताओं में ही वर्ष बीत गया इस बार भी 

क्यों करते हैं इतनी फिक्र

अपनों की और परिवार की ?

ऐसे सवालों ने मुझको घेर लिया 

सवालों से बचने को आँखे बंद किया

ए दिले नादान, अपना भला बुरा 

कब सोचोगे ? अपनों की फिक्र में ही रहोगे 

चिंतन को नयी दिशा मिली 

सेहतमंद आहार और योगा प्रणायाम

है सबसे जरूरी ।

परोपकारी बनो

 अपनी आत्मा की पुकार भी सुनो 

मानव तन मिलता नहीं दुबारा 

दिल की सुन दिल की कर 

मत करो हरदम फिकर 

छोटा सा नन्हां सा दिल है हमारा 

आ गया है माह दिसम्बर

पूरे वर्ष के चिंतन-मनन का गुणनफल 

स्व में साधना स्व के लिये भी अराधना

स्व में ही मिलते भगवान

स्व को पहचानो, करो स्व का सदा सम्मान ।

— आरती रॉय

*आरती राय

शैक्षणिक योग्यता--गृहणी जन्मतिथि - 11दिसंबर लेखन की विधाएँ - लघुकथा, कहानियाँ ,कवितायें प्रकाशित पुस्तकें - लघुत्तम महत्तम...लघुकथा संकलन . प्रकाशित दर्पण कथा संग्रह पुरस्कार/सम्मान - आकाशवाणी दरभंगा से कहानी का प्रसारण डाक का सम्पूर्ण पता - आरती राय कृष्णा पूरी .बरहेता रोड . लहेरियासराय जेल के पास जिला ...दरभंगा बिहार . Mo-9430350863 . ईमेल - arti.roy1112@gmail.com