कविता

बीते साल के खुशनुमा लम्हे

एकांत के क्षणों में गुफ्तगू हो गयी,

इक जाते हुए राही ने दास्तान सुना दी !

माना कि आज मैं बूढ़ा हो गया हूँ,

तुम्हे दूर उगता नूतन भास्कर दिख रहा,

बीते साल के खुशनुमा लम्हे क्यों भूल गए !!

मेरे जीवन का वानप्रस्थ चल रहा,

मुस्कराकर, गीत गाते हुए, नाचते बिदा करना,

मैं वही तुम्हारा सखा, गुजरता हुआ वर्ष हूँ !

मुड़कर इक बार नजर जरूर पलटना,

खुशियों के हज़ारों पलों के दीदार कराऊंगा !!

इस वर्ष की अन्तिम सीढ़ी पर,

कांपते हुए बैठा तुमसे कविता लिखवाऊंगा,

फिर चुपके से तुम्हे तुम्हारे अंतर्मन की पोटली,

कहानियों, कविताओं की खोल जाऊंगा !

जाते हुए राही की मासूम सी दास्तान पढ़ते जाना,

मेरे सखा, दो हजार तेइस, मेरी झोली के इंद्रधनुष,

जिनको रोशन तुम कर जाओगे, धन्यवाद करेंगे,

अश्रुपूरित निगाहों से बिदाई में नाचते गाते !!

राही ने भावुक हो सुनाई अपनी बात,

बिछड़ना मिलना रीत है जमाने की,

वादा करो, हमेशा तुम मुझे याद करोगी,

मुझे पता है, जब भी “परिसीमा के परे”

हाथों में स्पर्श करोगी, मैं दो हज़ार तेइस,

तुम्हे याद आऊंगा, आशीर्वाद दूंगा, हर वर्ष,

इक नया भाग्य का सूरज उगे, चांदनी बिखरे,

जाते जाते इक़ नया खूबसूरत सखा,

उपहार में दे जाऊंगा दो हजार चौबीस !!

— भगवती सक्सेना गौड़

*भगवती सक्सेना गौड़

बैंगलोर