गीत/नवगीत

सीखो

जब कहने से बात बिगड़ती , खामोशी से रहना सीखो
मन तक मन की बात न पहुँचे, मन की मन में सहना सीखो।

तूफ़ानी लहरें टकराकर चट्टानों से, शोर मचाती
चार कदम पर तट है लेकिन, भला कहाँ आवाज़ है जाती
धाराएँ प्रतिकूल बह रहीं, धाराओं से भिड़ना सीखो
जब कहने से बात बिगड़ती , खामोशी से रहना सीखो ।1।

सच को जान समझ जब कोई, सच संग भी न चलने पाये
अहंकार के वशीभूत हो, खुद भटके जग को भटकाये
त्याग अकल के अंधों को तब, अपनी राह पे चलना सीखो
जब कहने से बात बिगड़ती , खामोशी से रहना सीखो। 2।

अगर मोह सिर पर चढ़ जाए, राजवंश भी मिट जाते हैं
शकुनि की चालों में फँसकर, सदा युधिष्ठिर लुट जाते हैं
गर समरांगण सजा हुआ हो, शस्त्र त्यागकर लड़ना सीखो
जब कहने से बात बिगड़ती , खामोशी से रहना सीखो । 3।

— शरद सुनेरी