कविता

मेरी कलम को भाये राम (गीत)

मेरी कलम को भाये राम ।

जब से अयोध्या आये राम ।।

छोड़ रही पदचिह्न अपने

कागज की पगडंडी सारे

जा रही अयोध्या नगरी

कदम कदम जो राम उकारे

यात्रा उसकी है अविराम ।

मेरी कलम को भाये राम।।

अन्य बात उसे ना भाती

केवल राम स्तुति गाती

सुबह शाम दिन रैन स्वयं को

सनी राम स्नेह में पाती

दिख रहे हैं केवल श्रीराम।

मेरी कलम को भाये राम ।।

नर्तन करती अंगुलियों संग

चंढ़ा उसे श्रीराम का रंग

मीरा सी वो भयी बावरी

भक्तों से हुए उसके ढंग

करे सार्थक अपना नाम ।

मेरी कलम को भाये राम ।।

जबसे अयोध्या आये राम ।।

— व्यग्र पाण्डे

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र' कर्मचारी कालोनी, गंगापुर सिटी,स.मा. (राज.)322201