कविता

बसंत

बसंत आया 

मौसम हुआ मदमस्त

बही पुरवाई

झूमा सारा तन मन

खुशी की रंग बही

नवल धरा हुई

खिल गया आसमां

नई नई आ गई कोपलें

कोयल कुहंकी

चिड़िया चहकी 

छा गई लालिमा

रंग हुआ सुनहरा

मन भावन हुई

मन की तरंगे

आया रे बसंत

— जयचन्द प्रजापति ’जय’

जयचन्द प्रजापति

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