बसंत
बसंत आया
मौसम हुआ मदमस्त
बही पुरवाई
झूमा सारा तन मन
खुशी की रंग बही
नवल धरा हुई
खिल गया आसमां
नई नई आ गई कोपलें
कोयल कुहंकी
चिड़िया चहकी
छा गई लालिमा
रंग हुआ सुनहरा
मन भावन हुई
मन की तरंगे
आया रे बसंत
— जयचन्द प्रजापति ’जय’
बसंत आया
मौसम हुआ मदमस्त
बही पुरवाई
झूमा सारा तन मन
खुशी की रंग बही
नवल धरा हुई
खिल गया आसमां
नई नई आ गई कोपलें
कोयल कुहंकी
चिड़िया चहकी
छा गई लालिमा
रंग हुआ सुनहरा
मन भावन हुई
मन की तरंगे
आया रे बसंत
— जयचन्द प्रजापति ’जय’