लघुकथा

सच्ची आजादी

रीमा एक पड़ी लिखी जागरूक महिला है। वह हर वह काम करना चाहती है जो पुरुष करता है। वह भी पुरुषों की तरह पार्टी या मौजमस्ती करना चाहती है। 

राजन उसका पति अपने ओल्ड प्रेमिका के साथ घूमता रहता है । कहीं होटल में जाता है तो कहीं किसी डांस पार्टी में जाता है और मौजमस्ती करता है।

एक दिन शराब पी कर लड़खड़ाते हुए घर के अंदर आया। होश में नही था। रीमा संभालते हुए राजन से गुस्से में कहा..

’तुम आज फिर ज्यादा पी। कसम खाई थी की ज्यादा नही पियेंगे’

’बस थोड़ा सा ही पी थी। मोहनी ने पीला दी थी। थोड़ा बहुत मस्ती  हुई मोहनी के साथ फिर चला आया।’ राजन ने दबी आवाज में अपनी बात कही। 

इस तरह से राजन अपने प्रेमिका के साथ मौज मस्ती करता रहता है। 

रीमा भी आपने दोस्तों के साथ मौजमस्ती करना चाहती है। एक दिन अपने दोस्त शोभित के साथ घूमने चली गई।

आधी रात को रीमा नशे में घर में प्रवेश की। राजन रीमा के हाव भाव से समझ गया कि बीबी ने जमकर पिया है। 

राजन गुस्से में कहा…”शराब ज्यादा पी ली है’

”हां यार, मेरा दोस्त शोभित ने ज्यादा पीला दी। मौजमस्ती ज्यादा हो गई।”…रीमा ने अपने पति से कहा।

पति का दिमाग चकरा गया। इसके पास भी दोस्त हैं ? मौज करने जाती है। शराब पीती है। गुस्से में एक चाटा खींच कर राजन ने रीमा को मारा।

राजन ने क्रोध में कहा …”तुम मर्दों  के साथ शराब पीती हो।यही करने के लिए पढ़ी लिखी हो। शर्म हया नाम की चीज नही है।’

”तुम भी तो लड़कियों के साथ जाते हो’… कह कर रीमा ने अपना हाथ उठाया राजन को मारने के लिए। राजन ने रीमा का हाथ पकड़ ली।

“मेरा हाथ छोड़ो। तुम मरद हो। तुम करो तो सच्ची आजादी है और हम वही सेम कार्य करें तो हमे संस्कार तथा पढ़े लिखे की बात किया जाता है आखिर हम सब को  सच्ची आजादी कब इस तरह की मिलेगी”.कहकर रीमा रोने लगी। राजन खामोश हो कर देखता रहा।

— जयचन्द प्रजापति ’जय’

जयचन्द प्रजापति

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