बाल कविता

जंगल में होली

एक बार जंगल के अंदर

जानवरों से बोला बंदर

आया होली का त्योहार 

मिलजुल चलो, मनाएँ यार

सभी रहेंगे नशे से दूर 

बस हुड़दंग मचे भरपूर 

सबको लगी योजना प्यारी 

दौड़ – दौड़ कर ली तैयारी

जेब्रा ले आया पिचकारी 

रंग भरी चीते को मारी 

भालू नाचे, करे धमाल 

दादा शेर के मला गुलाल 

सूंड़ में पानी लाया हाथी 

बौछारों से भीगे साथी 

गीदड़ पानी से घबराया 

पकड़ गधे ने उसे घुमाया 

हिरण वहाँ से लगा सटकने

बंदर मामा लगे डपटने

झाड़ी में दुबका खरगोश 

चढ़ा लोमड़ी को था जोश 

बाहर आओ मेरे लाल 

रंग से भिगो दिया तत्काल 

सभी को आया अति आनंद 

प्रेम से रहना है स्वच्छंद 

बोल रहे सब अपनी बोली 

यादगार बन गई है होली 

— गौरीशंकर वैश्य विनम्र

गौरीशंकर वैश्य विनम्र

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