गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

दरिया को हैरानी है
मुझ में कितना पानी है

जीना है दुश्वार बहुत
मरने में आसानी है

हम दिल दे कर भूल गए
यह भी क्या नादानी है

दिल भी है दर्पण जैसा
चेहरा भी नूरानी है

उन सांसों से टकरा कर
मौजे हवा मस्तानी है

इश्क़ बुलाए हम ना जाएं
यह तो ना फरमानी है

जब से सागर को देखा
दरिया पानी पानी है

हर दिल पर है राज उसका
हर दिल पर सुल्तानी है

आज की रात है वसल की रात
आज की रात सुहानी है

दरिया, कच्चा घड़ा , सोनी
इश्क में जान गवानी है

घुल मिल जाती है सबसे
नमिता भी दीवानी है
— नमिता राकेश