गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

वो जो सहरा मे गुलाबों से निकल कर आए
यूँ लगा हाय हिज़ाबो से निकल कर आए

बादमुद्दत युँ लगा दिल ने धड़कना सीखा,
जब से चाहत मे वो ख़्वाबों से निकल कर आए

फूल गुलशन मे खिले नूर फ़िज़ा क्या कहना,
मेरे अश-आर किताबों से निकल कर आए

दर्द तूफ़ान-थपेड़ो में फंसे लाख मगर,
तैर हर बार बहाबों से निकल कर आए

हमने दामन में मुहब्बत के गुल खिलाए थे,
बेवफा यार हुबाबो से निकल कर आए

दिलनशी हो ये समा और नहीं रब रुठे,
वो ‘मृदुल’ प्रश्न जवाबो से. निकल कर आए

— मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016