गीत/नवगीत

पाप का घड़ा

पाप का घड़ा, जब भर जाता है
बड़े से बड़ा फिर, पकड़ा जाता है
कोई भी तर्क, काम नही करेगा
नाटक से काम, अब नही चलेगा।

पूरी कैबिनेट, जेल में विराजमान
लो आ गये, अब साथ में श्रीमान
जेल से ही दायित्व, वह पूरा करेंगे
कट्टर ईमानदार हैं,खुद कहते रहेंगे

जेल में ही कैबिनेट,आप बुला लेंगे
संख्या बल पूरी , सोच हर्षा लेंगे
लोकतंत्र का आज, कत्ल हो गया
कहकर जनता को, भरमा लेंगे

कट्टर ईमानदारी का, है यह नमूना
सरकारी धन को,लगाया खूब चूना
खुद को प्रमाणपत्र, देता रहता है
खुदको आईआईटियन, कहता है

अब कौन सी, शातिर चाल चलेगा
थोड़ा झुकेगा या,कि अकड़ा रहेगा
इतने दिन झूठ से, काम चल गया
पाप का घड़ा, अन्ततः भर गया।।
पाप का घड़ा, अन्ततः भर गया।।

— नवल अग्रवाल

नवल किशोर अग्रवाल

इलाहाबाद बैंक से अवकाश प्राप्त पलावा, मुम्बई