हास्य व्यंग्य

खट्टा-मीठा : मुझे भी जेल भेजो

न…न…न… मुझे ग़लत मत समझिए। मैं केजरीबवाल का साथी नहीं हूँ और किसी शराब या खनन घोटाले से भी मेरा कोई लेना-देना नहीं है। मैं कोई आदतन अपराधी भी नहीं हूँ। मैं तो एक सीधा-सादा अवकाशप्रापत सरकारी कर्मचारी और पेंशनभोगी हूँ। इसलिए मेरे लिए किसी आपराधिक मामले में फँसकर जेल जाने की कोई संभावना भी फ़िलहाल नहीं है।

अब आप पूछेंगे कि मैं जेल जाना क्यों चाहता हूँ। इसके कई कारण हैं। पहला तो यह कि अभी मेरी ज़िन्दगी में जो एक प्रकार का ठहराव आ गया है, वह दूर हो जाएगा किसी एडवेंचर पर जाने की तरह। कोई साहसपूर्ण कार्य करने का अपना अलग आनन्द होता है। मैं यह आनन्द लेना चाहता हूँ।

दूसरा यह कि वहाँ मुफ़्त में रहने खाने की सुविधाएँ मिलेंगी। मैं पोस्ट ग्रेजुएट और वरिष्ठ नागरिक भी हूँ। इसलिए मुझे “ए” नहीं तो “बी” क्लास की सारी सुविधाएँ अवश्य मिलेंगी। बीच-बीच में मैं दिल के दर्द का बहाना बनाकर अस्पताल में भी भर्ती हो सकता हूँ और वहाँ ऐश कर सकता हूँ।

तीसरा कारण यह है कि मैं वहाँ श्री कृष्ण जन्मस्थान के एकान्त वातावरण में आत्मिक चिन्तन कर सकूँगा। वहाँ दूसरे रहवासियों को योग का प्रशिक्षण और धार्मिक प्रवचन भी कर सकूँगा। वे लोग महान होते हैं जिनको जेल में रहनेवालों की सेवा का अवसर मिलता है।

पर मेरा जेल जाना सरल नहीं है। वे लोग भाग्यशाली होते हैं जिनके घर सीबीआई या ईडी का छापा पड़ता है। मेरी औक़ात तो इतनी भी नहीं है कि आयकर वालों का छापा भी पड़ सके। मुझे तो बिजली विभाग के नोटिस भी नहीं आते। अधिक से अधिक क्रेडिट कार्ड वालों का नोटिस ज़रूर आ जाता है जब उनका कोई बिल जमा करना भूल जाता हूँ। पर वह जेल जाने के लिए पर्याप्त नहीं है।

अब मैं जेल केवल एक ही स्थिति में जा सकता हूँ जब या तो मैं कोई अपराध करूँ या कोई मेरे ऊपर झूठा आरोप लगाये। पर इस उम्र में अपराध करने की मेरी हिम्मत नहीं है। इसलिए जेल जाने में आप मेरी सहायता कर सकते हैं। कृपया कोई मेरे ऊपर झूठा आरोप लगा दीजिए और पुलिस में रिपोर्ट लिखना दीजिए, ताकि मेरी जेल जाने की इच्छा पूरी हो सके।

— बीजू ब्रजवासी

फाल्गुन शु. १२, सं. २०८० वि. (२२ मार्च, २०२४)