सामाजिक

अलग पहचान बनाने के लिये सम्मान मिलना चाहिए – समान हक

सही तो है हम तन से अलग हममें भी भाव और जज़्बात आम इंसानों की तरह ही समाए हैं । हमें भी बहुत दुःख होता यदि कोई हमारा तिरस्कार करता तो , हमें खुशी होती दूसरों की खुशी में भी शामिल होकर , दुआओं से दूसरों को नवाज़ कर । चाहे आम इंसान हमारे बारे में सुद्बबुद ले या ना ले परंतु हम हमेशा आम इंसानों के बारे में जानकारी रखते हैं । ये हमारी लालच नहीं , बल्कि कुछ कार्य ऐसे होते हैं जहॉं हमारे बिना शुभ कार्य अधूरा सा रहता । परंतु आम इंसान हमें विभिन्न नामों से बुलाकर हमारा तिरस्कार भी करती और हमें लालची कह एक अपमान का तमगा भी पहना देती सभी नहीं परंतु पचास प्रतिशत आम इंसानी दुनिया हमें दूर से ही देख लगता जैसे वो रुख ही मोड़ लेती है । 

ये व्यथा आज जिनकी लिख जिससे अवगत करा रही हूं । ये हमारी तरह आम इंसानों की श्रेणी में चाहे नहीं आते बल्कि ये विशेष उच्च श्रेणी में समाते हैं । क्यों कि पुराणों अनुसार कहा जाता है की साक्षात श्री राम जी के वनवास गमन पर यही श्रेणी पूरे चौदह बरस तक उसी स्थान पर उनके लौटने का इंतजार करती रही थी । क्योंकि श्री राम जी ने नर-नारी को लौट जाने का संदेश दिया और वो वनवास हेतु चले गये परंतु तीसरा समुदाय ने ही नर और न ही नार वहीं खड़े रह किसी निर्णय पर नहीं पहुंच सके क्यों कि न तो वो नर हैं और न ही नार । इसलिए सभी ने वहीं चौदह बरस रहा श्री राम जी के आने और पुनः उनके आदेश का इंतजार किया । जब श्री राम जी अयोध्या लौटे तो उन्होंने उनके द्वारा वहीं खड़े रह इंतजार करने के फैसले से खुश हो उन्हें वरदान दिया की उनके द्वारा दी गई हर एक दुआ हर किसी के लिये फलीभूत होंगी । 

ये तो हो गयी प्राचीन पुराणों अनुसार बातें । परंतु आज के समय में आम इंसानों द्वारा इन्हें स्वयं कमाने कि सलाह देते फिरते लोग और इनके द्वारा खुशी के मौके पर मांगी गई खर्ची को भी ग़लत शब्द या भाव के साथ देते सरल शब्दों में इसे अपमान भी कह सकती हू्ॅं । धीरे-धीरे आज बहुत से तीसरे समुदाय के सदस्यों ने इस अपमान के घूंट को पीने से बेहतर कुछ कर गुजरने की ठानी और उन सभी अधिकार को पाने की कोशिश की जो आम नागरिकों को प्राप्त है । अर्थात शिक्षा ग्रहण में समानति , सरकारी नौकरी , समतुल्य सम्मान इत्यादि । हाल ही मे एक साहित्यिक समारोह के अंतर्गत जब मैंने मुख्य अतिथि के रूप में जब तीसरे समुदाय की सदस्य को देखा तो बहुत ही आश्चर्य भी हुआ और खुशी भी । साथ ही जब उनके ही मुख से उनके जीवन के अब तक गुजरे कड़वे अनुभवों को सुना तो जैसे कलेजा ही निकलकर जैसे बाहर आ गया । आंसूओं की धारा आंखों में दबाए सबसे छुपा रही थी जानते हैं वो वो थी मैं उन्हें ममता , स्नेह व सम्मान में दीदी का संबोधन दे बुलाती हूॅं ।‌ वो थी हमारे भारत देश के महाराष्ट्र के विदर्भ प्रांत की तीसरे समुदाय की पहली वकील जिनका नाम है शिवानी सुरकार जो की महाराष्ट्र के ही वर्धा में जन्मी वहां पली-बढ़ी । जिन्होंने अपने समुदाय में रहकर वो कर दिखाया जो ख्वाब हर कोई सजाता पर आने वाली राह में चुनौतियों से डर जाता और इस डर से अपने लिये निर्णय से दो कदम पीछे ही हो जाता है परंतु शिवानी सुरकार न पीछे हटी कितनी अधिक विपरीत परिस्थितियों का सामना करके के बाद , अपने ही घर में मॉं-बाप के साए में रह कर भी अपने ही भाई द्वारा शारीरिक प्रताड़ना सही फिर भी वो हिम्मत नहीं हारी दिल ने ठान लिया था वो पढ़ेगी और जब कोई इंसान ठान लेता है तो विपरीत परिस्थितियां भी उसके कदम नहीं रोक पाते यही हुआ शिवानी जी के साथ लक्ष्य पर एकाग्र कर बढ़ती रही आगे और आज वो विदर्भ की पहली वकील कहलाती है गर्व है मुझे उन पर और सीख मिलती की विपरीत परिस्थितियों का हवाला देना तो सिर्फ ओर सिर्फ एक बहाना मात्र है । जब मैं दीदी से नागपुर के कार्यक्रम के दौरान मिली तो उनकी तब तक की आत्मकथा सुन बहुत आश्चर्य हो रहा था बस यही सोच रही थी की इतनी जटिल समस्याओं से भी जूंभ चेहरे पर इतनी बेहतरीन मुस्कुराहट उनके सौंदर्य का ओर अधिक श्रृंगार कर रही थी यह भी सोच दिल में मेरे आई की अगर मैं होती शिवांगी दीदी के स्थान पर तो हो सकता था…..

ठीक इसी तरह सम्मानित समुदाय की एक नृत्यांगना जिन्हें में व्यक्तिगत तो नहीं मिली परंतु फिर भी उन्होंने जैसे मुझे वशीभूत कर अपने वश में कर लिया हो । इस समय इंस्टाग्राम के जरिए जिन की मैं दीवानी हुई उन्हें देख , उनके नृत्य कौशल को देख अरे-अरे शायद मैं ही नहीं अपितु सभी आज कल उनके रूप और नृत्य के दीवाने हैं मैं बात कर रही हूॅं सोशल मीडिया इंस्टाग्राम के पेज़ जिसका नाम है khushi1216 जिसमें खुशी जी की हर एक मुद्राएं मोहित कर दर्शकों को नाचने पर मजबूर कर रही हैं । अपनी शारीरिक कमी अर्थात तीसरे समुदाय की होने के बावजूद उन्होंने अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई है । आज के समय में इंस्टाग्राम के माध्यम से मैंने देखा की खुशी जी को हर बड़े से बड़े समारोह जैसे हल्दी रस्म , मेहंदी रस्म , किटी पार्टी , या अन्य समारोह में भी बुलाया जा रहा जिसके चलते वो अपनी पहचान बना पाई हैं । उनका श्रृंगार भी सभी को वशीभूत करता जो उनके सौंदर्य में चार-चांद लगा देता है । ऐसे लोगों को भी हमारी देश की सरकार को सम्मानित कर उनका मान और हिम्मत बढ़ानी चाहिए ताकी ये विशेष समुदाय ये यकीन कर सकें की उनका भी कोई अपना है । उनको भी जीने का हक है वो आम इंसान से भिन्न नहीं उनके लिये भी वो सभी नियम हैं जो आम इंसान के लिये । 

कलाकार कोई भी हो सकता है कला भेदभाव नहीं करती है । कला कलाकार के प्रति समर्पित व्यक्ति का सम्मान करती और कलाकार अपनी कला का सम्मान करता । इसलिए किसी भी कलाकार को मखौल उसके शरीर को लेकर नहीं बनाना चाहिए । बल की तालियों की गड़गड़ाहट के साथ उसे प्रोत्साहित कर उन्हें हिम्मत देनी चाहिए । 

सोशल मीडिया पर ही एक ओर ऐसा ही चर्चित चेहरा है जो आम जनता के बीच रहकर विशेष होने पर भी दुत्कारी गई परंतु हार नहीं मानी नाम है उनका पूजा रेखा शर्मा जिसके पॉंव छूकर उससे आशीर्वाद ग्रहण करते हुए बहुत से लोगों को देखा है मैंने । क्या मॉल , सब्जी बाजार या कहीं भी वो पहुंच जाए लोग उसे उसके व्यक्तित्व व सरल स्वभाव के चलते पूजते । पूजा भी आज किसी पहचान की मोहताज नहीं और ना ही अपनी शारीरिक कमी का उसे कोई भी ग़म है । जयपुर की भी ब्रेंड एंबेसडर रही है पूजा जी , जो कि उनकी इंस्टाग्राम प्रोफाईल में लिखा है । लोकल ट्रेन में आम महिलाओं के बीच रह कर उन्हें आम महिलाओं से वही सम्मान मिलता जैसे दूसरी महिलाओं को मिलता । पूजा जी आज अपनी विभिन्न सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म से रीलो के माध्यम से एक विशिष्ट स्थान पा चुकी है । उनकी जिंदादिली देखते ही बनती है । गरीब बुजुर्गों को आशिर्वाद स्वरूप उनके द्वारा दिए सिक्के को हर कोई सीने से लगा कर रखता ना जाने कब किसकी दुआ लग जाए , फर्श पर पड़ा व्यक्ति ना जाने कब अर्श को पा जाए । घमंड ना करना मानव बस इतना याद रखना । ज़मीं पर रह जमीं को ही आसमां समझ पांव रखना । 

आज अंजान लोग भी पूजा के दर्शन मात्र के लिये तरसते और यदि दर्शन हो जाएं तो अपनी भावनाओं में बहे आंसूओं को रोक नहीं पाते । समझती है पूजा जी हर किसी की भावनाओं को सम्मान में सभी को सीने से लगा या स्वयं उनके सीने से लग अपना पन व ममता लुटाती । गरीबों की मसीहा , बच्चों से स्नेह रखने वाली पूजा ने बहुत अपमान भरे शब्दों के भी घूंट पीये है परंतु कभी भी हिम्मत नहीं हारी उसने हौसलों की उड़ान भरना सीखाते ये कटु शब्द और कुछ अलग सबसे करने की हिम्मत भी दिलवाते हैं कटु शब्द । 

नमन हैं मेरा शिवांगी सुरकार , खुशी जैसी बेहतरीन नृत्यांगना को जो आज लोगों को जिंदादिली से जीने की सीख दे रहे हैं ।

साथ ही पूजा जैसी नेक दिल जिगर वाली इंसान जो गरीबों के दर्द को अपना दर्द समझती हैं । अरे इतना सुन्दर श्री हरि ने हमें मानव जीवन दिया है तो उस श्री हरि के दिया शरीर रुपी प्रशाद को खुशी-खुशी ग्रहण करो । संभाल कर रखो इस बेशकीमती प्रशाद स्वरूप शरीर को श्री हरि की इच्छा मान इसका सम्मान करो । बहुत से आम इंसा जब टूट कर इस मानव जीवन को अपने ही हाथों से खत्म कर लेते हैं तो श्री हरि भी आपसे नाराज़ हो जाते और वो भी उनके दिये गये प्रशाद रूपी मानव शरीर को या यूं कह लो आपकी पवित्र आत्मा को वापस ग्रहण नहीं करते हैं । 

एक साधारण से उदाहरण देती हूॅं , मान लिजिए आपने अपनी कार या कोई अन्य सामान किसी को प्रयोग मात्र के लिये कुछ समय के लिये दिया है और जिसको दिया उसकी गलती से सामान टूट गया या थोड़ा खराब हो गया तो आप भी नाराज़ ही होंगे ना ? क्या आप फिर से जिसे अपना सामान दिया था इस्तेमाल करने को उस पर पुनः विश्वास कर पाएंगे ? चाहे जिसने आपका सामान लिया वो बनवाकर ही क्यों ना दे दे । फिर भी आप उसे अगली बार इस्तेमाल करने को नहीं देंगे या देंगे तो संकोच से भरे रहेंगे इसे हम मजबूरी नाम भी दे सकते हैं । तो आप सोचिए श्री हरि ने भी तो आपको ये आम मानव जीवन दिया कुछ सोच समझकर उन्हें विश्वास था की आप इस मानव जीवन का सद् उपयोग करेंगे परंतु सभी नहीं कुछ ऐसे लोग हैं जो श्री हरि के प्रशाद को आत्महत्या कर नुकसान पहुंचा देते फिर तो श्री हरि का नाराज़ होना लाजिमी ही बनता है और वो आपकी पवित्र आत्मा को भी ग्रहण नहीं कर पाते । और आत्मा नामक पुण्य चीज़ इस धरा पर मोक्ष हेतु भटकती रहती बस । अगर कभी कोई समस्या आती और आप टूटने लगते हैं तो जिस श्री हरि ने जीवन दिया उसी के चरणों में कुछ वक्त गुजार एकांत , एकाग्रता से ध्यान लगा अपनी ग़लती समझे कोई न कोई किसी न किसी रूप में समाधान जरूर मिल जाएगा । अगर उस श्री हरि ने हमें आज सुबह उठते ही , आज के दर्शन कराए तो उसने कुछ न कुछ सोचा होगा और वही हमारे खाने पीने का माध्यम भी बनेगा चाहे आपसे मेहनत करवाएं पर भूखा ना सुलाएगा । ठीक उसी तरह जब तक आप रोज एक नयी सुबह का दर्शन करें मतलब आपकी सांसें चल रही मतलब यही सोचे की आज भी मेरे इष्ट ने मुझे सांसें दी हैं तो वो ही जुगाड़ करवाएंगे । चिंता चिता के समान , मुस्कुराहट बनाए इंसान ।

आज हमारे बीच रहकर वो भी सभी तरह के कानूनी नियमों का समान एकाधिकार पाकर तीसरे समुदाय ने ये तो साबित कर दिया है की वो भी किसी से कम नहीं । शिक्षा पर उनका भी अधिकार है उन्हें भी जीने का अधिकार है । जिस तरह प्रभु ने आपको सॉंसें दी उनको भी दी उनमें भी भाव , जज़्बात हैं उन्हें भी खुशी होती दर्द भी । इसलिये सम्मान के हकदार इस समुदाय को सम्मान दो सभी । गुज़ारिश है । 

— वीना आडवाणी तन्वी

वीना आडवाणी तन्वी

गृहिणी साझा पुस्तक..Parents our life Memory लाकडाऊन के सकारात्मक प्रभाव दर्द-ए शायरा अवार्ड महफिल के सितारे त्रिवेणी काव्य शायरा अवार्ड प्रादेशिक समाचार पत्र 2020 का व्दितीय अवार्ड सर्वश्रेष्ठ रचनाकार अवार्ड भारतीय अखिल साहित्यिक हिन्दी संस्था मे हो रही प्रतियोगिता मे लगातार सात बार प्रथम स्थान प्राप्त।। आदि कई उपलबधियों से सम्मानित