ग़ज़ल
ऐश भी की है तो की है ठोक के।
मय अगर पी है तो पी है ठोक के।
परिश्रम के रंग बिरंगे धागें से,
ललक भी सी है तो सी है ठोक के।
लाख किस्मों की अजब खुशबू,
बाग़ से ली है तो ली है ठोक के।
हर्ष के सब फूल हम ने चुमें हैं,
ज़िंदगी जी है तो जी है ठोक के।
बालमा मटरगश्ती की भी हद़ है,
शहर में की है तो की है ठोक के।
— बलविन्दर बालम