ग़ज़ल
पुतलों की भीड़ है हरेक आदमी के पास
आता है कौन दिल से आजकल किसी के पास
है बेसबब हरेक ज़िन्दगी की ज़िन्दग़ी
अब ज़िन्दग़ी बची कहाँ है ज़िन्दगी के पास
बैठे हैं दर्दो ग़म की एक नाव में सभी
कु़छ बेकली के पास हैं कुछ बेहिसी के पास
चुँधिया गयी हैं आँखें रोशनी में इस कदर
घबरा के जा रहे हैं लोग तीरगी के पास
मदहोश हो चले हैं इस कदर हवस में लोग
ले जा रहे हैं ख़ुद ही गर्दनें छुरी के पास
है मेरी रुख़सती का वक्त इस जहां से, ये
पैग़ाम हो सके तो भेज दो ख़ुशी के पास
रखना इसे हिफ़ाज़तों के साथ दोस्तो
दिल अपना छोड़ जा रहे हैं आप ही के पास
— सतीश बंसल