कविता

कौन सुने पुकार

सात्विक मन से पुकारो
या तामसिक मन से
यहां कोई किसी का सुनने वाला नहीं है,
एक सत्य जितनी जल्दी समझ सकते हो
तो अतिशीघ्र समझ लो,
कि ऊपर आसमान और नीचे जमीं है,
अत्याचारी अत्याचार कर के रहेंगे,
खामोश रहे तो हद से गुजर के रहेंगे,
अपनी सलामती की चाहे कितनों मांगो भीख,
या निकालते रहे चीख पर चीख,
किसी के भरोसे न रह
खुद को इतना मजबूत बनाओ,
कि दे सको मुंहतोड़ जवाब
और अपने आप को सुरक्षित बचाओ,
एकता क्या होता है तुमने सुना नहीं होगा,
संगठित लोगों की ताकत को गुना नहीं होगा,
जाओ प्राकृतिक सिद्धांत को तो सीखो,
मधुमक्खियों की तरह शांत पर मजबूत दिखो,
अकेले लड़ने जब भी जाओगे,
दुराचारियों की मंशा से कैसे टकराओगे,
शैतानों से बचाने कोई भगवान नहीं आएगा,
रहो संगठित समविचारी लोगों संग
यही एकता तुम्हें सबसे बचाएगा,
अपनी पुकार खुद सुनो,
और जल्द से जल्द अपना वजूद चुनो।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554