विश्व छात्र दिवस,डॉ. कलाम का पूरा जीवन एक जीवंत प्रेरणा है।
हर साल 15 अक्तूबर को जब विश्व छात्र दिवस मनाया जाता है, तो यह दिन हमें केवल भारत के पूर्व राष्ट्रपति और महान वैज्ञानिक डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम की याद नहीं दिलाता, बल्कि हमें यह एहसास भी कराता है कि किसी मुल्क की असल ताक़त उसकी युवाशक्ति में छिपी होती है। संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2010 में इस दिन को मनाने की घोषणा की थी ताकि दुनिया भर के विद्यार्थी यह समझें कि वे एक राष्ट्र के भविष्य के निर्माता हैं और उन्हें उस वैज्ञानिक और नैतिक दृष्टि का अनुसरण करना चाहिए, जिसे डॉ. कलाम ने अपने जीवन से परिभाषित किया।डॉ. कलाम का पूरा जीवन एक जीवंत प्रेरणा है। रामेश्वरम के एक साधारण मछुआरे परिवार से निकल कर भारतीय अंतरिक्ष और रक्षा विज्ञान की बुलंदियों तक पहुँचना इस बात का प्रमाण है कि मनुष्य अगर ईमानदारी, परिश्रम और लगन से काम करे तो कोई मंज़िल दूर नहीं। वह केवल मिसाइल मैन नहीं थे, बल्कि एक ऐसे शिक्षक थे जिनकी हर बात में विद्यार्थियों के प्रति स्नेह, विश्वास और उम्मीद झलकती थी। उन्होंने कहा था कि विद्यार्थियों में असीम ऊर्जा है, बस उसे सही दिशा देने की ज़रूरत है।आज जब शिक्षा प्रतिस्पर्धा और रोज़गार की दौड़ तक सीमित होती जा रही है, तब कलाम साहब की विचारधारा और भी प्रासंगिक हो जाती है। उन्होंने सदैव कहा कि शिक्षा का मक़सद नम्बर या डिग्री नहीं, बल्कि समाज के लिए कुछ रचनात्मक करने की सोच होनी चाहिए। उनका विश्वास था कि “इग्नाइटेड माइंड्स” अर्थात् जगाई हुई चेतनाएँ ,किसी भी राष्ट्र की असली पूँजी हैं। यही कारण था कि वे हर छात्र को अपने भीतर का सपना पहचानने और उसे साकार करने का साहस देते थे।विश्व छात्र दिवस केवल उत्सव का नहीं, आत्ममंथन का दिन भी है। आज के युवाओं के सामने जहाँ तकनीक और अवसरों के असीम आयाम हैं, वहीं वे जलवायु संकट, मानसिक तनाव और सामाजिक विषमता जैसे प्रश्नों से जूझ रहे हैं। ऐसे में डॉ. कलाम का यह संदेश दिशा देता है, ज्ञान को करुणा के साथ जोड़ना सीखो, क्योंकि केवल जानकारी से नहीं, बल्कि संवेदना से समाज बदलता है।इस अवसर पर हर संस्थान और हर विद्यार्थी को यह प्रण लेना चाहिए कि वे डॉ. कलाम के आदर्शों को अपने आचरण में उतारेंगे शिक्षा को सेवा का माध्यम बनाएँगे, और सपनों को कर्म का रूप देंगे। जब ऐसा होगा, तब सचमुच यह दिवस मानवता और प्रगति का पर्व बनेगा। डॉ. कलाम के शब्दों में कहें तो “एक पुस्तक, एक विद्यार्थी और एक शिक्षक दुनिया बदल सकते हैं।” यही वाक्य आज भी हर दिल में उम्मीद की लौ बनकर जगमगा रहा है, और हमें याद दिला रहा है कि सच्चा राष्ट्र निर्माण कक्षा से ही आरंभ होता है।
— डॉ. मुश्ताक अहमद शाह
