“गीत”
छंद – सखी/आँसू , शिल्प विधान-14 मात्रा (चार चरण), 3 चौकल +गुरु , अंत में मगण (222)अथवा यगण (122) आरम्भ में द्विकल अनिवार्य
सखि बसंत भौंरा आया
मन मन फागुन बौराया
नच माली महुवा कूँचा
तक नैना झरना ऊँचा॥
बौर आम डाली डाली
है कोयल काली काली
मतवाली गाए फागा
जिय तरसा बैठा कागा॥
मन हरसित सरसों फूला
चित विह्वल डाली झूला
अंग अंग उठ अँगड़ाई
पकड़े साजन परछाईं॥
है नादां सजना मोरा
शैशव उतपाती छोरा
नहिं जाने मंडप माला
नाचे गाए ब्रजबाला॥
छवि नूतन धारी कलियाँ
महकाएँ सारी गलियाँ
विरहानल बढ़ती जाए
कब प्रीतम मोरा आए॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी