गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : क़त्ल

ऐसे किया है कत्ल, के ईमान ले गये।
यारों वो जाते जाते, मेंरी जान लें गये।

आया न कुछ नज़र, सिवा उनकी अदाओं के,
चारो चरफ फैला हुआ, जहान ले गये।

देखा जो उनका ताब, तो नज़रें न टिक सकी,
पल भर में छीन कर मेंरा, गुमान ले गये।

चेहरे के नूर में था, मुकम्मल जहां यारों,
मेरे दर-ओ-दीवार की, वो शान ले गये।

किससे कहूं ख़ुदाया ख़ैर, वो खुद ही थे सामने,
जाते हुये जमीन-ओ-आसमान ले गये।

तौबा वो क्या मंज़र था, अपनी ख़बर नहीं,
मैं कौन हूं क्या हूं, मेरी पहचान ले गये।

पुष्पा “स्वाती”

*पुष्पा अवस्थी "स्वाती"

एम,ए ,( हिंदी) साहित्य रत्न मो० नं० 83560 72460 [email protected] प्रकाशित पुस्तकें - भूली बिसरी यादें ( गजल गीत कविता संग्रह) तपती दोपहर के साए (गज़ल संग्रह) काव्य क्षेत्र में आपको वर्तमान अंकुर अखबार की, वर्तमान काव्य अंकुर ग्रुप द्वारा, केन्द्रीय संस्कृति मंत्री श्री के कर कमलों से काव्य रश्मि सम्मान से दिल्ली में नवाजा जा चुका है