कविता

तन्हाई

अकेलेपन की आहट से मन जरा सा घबराया,
किसके साथ गुजारूं शाम जब खयाल आया।

सन्नाटा दबे पांव आकर कानों में कुछ बुदबुदाया,
भटकती आंखों को कहीं न कोई भी नजर आया।

खाली कमरे में गूंज उठी सिसकियां मेरी,
तेरा ख्याल आते ही जब जी मेरा भर आया।

ये मालूम है कि कद्र नहीं मेरे प्यार की तुझको,
न जाने फिर भी क्यों तेरी बातों पर एतबार आया।

यूं तो अब इंतजार की कोई वजह ही नहीं बाकी,
जाने क्यों फिर भी बंद आंखों में तेरा ख्वाब आया।

— कल्पना सिंह

*कल्पना सिंह

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