गीतिका/ग़ज़ल

बसंत आया है

डाल-डाल पर गुल खिले, बसंत आया है।
पात-पात हँसकर कहे, बसंत आया है।

चारु चंद्र की चाँदनी, विहार को उतरी।
स्वर्ग लोक भू पर दिखे, बसंत आया है।

सुर के साथ ठंडी हवा, फिज़ाओं में बिखरी।
तार-तार मन का गुने, बसंत आया है।

बाग-बीच कलिकाओं से, किलोल भँवरों की।
फूल-फूल तितली उड़े, बसंत आया है।

कुंज कुंज में कोकिला, खुमार से कुहकी।
आम्र बौर तरु पर लदे, बसंत आया है।

खूब दृष्टि को भा रहा, उफान नदियों का।
धार-धार को सुर मिले, बसंत आया है।

स्वर्ण वर्ण सरसों खिली, विशाल खेतों में।
लख किसान पुलकित हुए, बसंत आया है।

नम हवाओं के स्पर्श से, प्रसन्न है वसुधा।
बीज-बीज अंकुर उगे, बसंत आया है।

सृष्टि रूप नव से जगी, उमंग जीवन में।
पर्व काश! घर घर मने, बसंत आया है।

-कल्पना रामानी,नवी मुंबई

*कल्पना रामानी

परिचय- नाम-कल्पना रामानी जन्म तिथि-६ जून १९५१ जन्म-स्थान उज्जैन (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवास-नवी मुंबई शिक्षा-हाई स्कूल आत्म कथ्य- औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद मेरे साहित्य प्रेम ने निरंतर पढ़ते रहने के अभ्यास में रखा। परिवार की देखभाल के व्यस्त समय से मुक्ति पाकर मेरा साहित्य प्रेम लेखन की ओर मुड़ा और कंप्यूटर से जुड़ने के बाद मेरी काव्य कला को देश विदेश में पहचान और सराहना मिली । मेरी गीत, गजल, दोहे कुण्डलिया आदि छंद-रचनाओं में विशेष रुचि है और रचनाएँ पत्र पत्रिकाओं और अंतर्जाल पर प्रकाशित होती रहती हैं। वर्तमान में वेब की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘अभिव्यक्ति-अनुभूति’ की उप संपादक। प्रकाशित कृतियाँ- नवगीत संग्रह “हौसलों के पंख”।(पूर्णिमा जी द्वारा नवांकुर पुरस्कार व सम्मान प्राप्त) एक गज़ल तथा गीत-नवगीत संग्रह प्रकाशनाधीन। ईमेल- [email protected]