कविता

आसान कहां होता है

आसान कहाँ होता है,
पुरुष बन जाना!

कभी प्रेमी तो कभी पागल कभी, देवदास बन जाना!

कोई रूठे तो बेसुरे हो कर भी,
गाना सुनाना!

आसान कहाँ होता है,
पुरुष हो जाना!

कई परेशानियों के होते हुए भी,
हर पल मुस्कुराते रहना!

आसान कहाँ होता है,
पुरुष हो जाना!

बिना पैसे के भी घर को,
राशन से भर जाना!

कभी पति, पिता,भाई ,दोस्त ,प्रेमी की,भूमिका में खुद ही ढल जाना!

आसान कहाँ होता है,
पुरुष हो जाना!

हजारों परेशानियों के बाद भी,
प्रेमिका से मिल आना चुपके से उसके घर के चार पांच चक्कर लगा आना!

आसान कहाँ होता है,
पुरुष हो जाना!

टूटे हाथो से भी सिगरेट के छल्ले उड़ाना!
हुक्का बार में जाकर दोस्तो को
लाइव कर के दिखाना!

आसान कहाँ होता है,
पुरुष हो जाना!

अपनें दर्द को कभी,
सामने न ले आना!
सबकी जरूरतों की खातिर,
अपनी जरूरतें भुला देना!

आसान कहाँ होता है,
पुरुष हो जाना!!

शालिनी यादव

महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की समाजकार्य की छात्रा