सम्बंध के दोहे
नित पावन सम्बंध हों,तब बनती है बात।
पावनता यदि लुप्त हो,तो अँधियारी रात।।
सदा सुहावन बंध हो,तब भूषित सम्बंध।
अस्थायी सम्बंध हों,तो बिरथा अनुबंध।।
मात-पिता संतान के,मध्य नेह-सम्बंध।
रिश्ते हैं यदि निष्कलुष,तब हो पूर्ण निबंध।।
मुस्कानें बिखरा रहे,जग में नित सम्बंध।
तोड़ सका है कौन कब,युगयगीन के बंध।।
सम्बंधों में रह रहा,नित देखो भगवान।
जो रखता है लाज को,और बचाता आन।।
कभी स्वार्थमय नहिं रखो,रिश्ते बंदे सोच।
वरना निर्वाहन कठिन,आ जाएगी मोच।।
सम्बंधों में उच्चता,पलता नित अनुराग।
सब दोषों से दूर कर,सम्बंधों का राग।।
पति-पत्नी की ज़िन्दगी,हो सबसे मजबूत।
विश्वासों से पुष्ट यह,बन जाती युग- दूत।।
आओ,हम रोशन करें,अपने सब सम्बंध।
हर नाते पर हो सृजित,पूरा ललित निबंध।।
— प्रो (डॉ) शरद नारायण खरे