छंद गीत
हे वसुनंदन करते वंदन
त्राहिमाम जग आओ तुम ।
व्याप्त भंयकर भय उर अंतर
डर को शीघ्र मिटाओ तुम ।।
भुषित धरती दुषित होती
यह छद्मावरणी छाया है ।
जानूँ तुम ही कारण कारक
पर यह कैसी माया है।
नैनो पर नित परदे पड़ते ,
सत्य जरा समझाओ तुम
व्याप्त भयंकर भय उर अंतर
डर को शीघ्र मिटाओ तुम।।
दृष्टि उठाकर सृष्टि संवारो
अपनों को आप उबारो।
कष्टो के कारण से ईश्वर
हैं त्रस्त दिशायें चारों ।
हरे दैन्यता भरे सौम्यता
दुखी हृदय हर्षाओ तुम ।
व्याप्त भयंकर भय उर अंतर
डर को शीघ्र मिटाओ तुम ।।
देश हमारा श्रेष्ठ बने अब
सिद्धियाँ पलती सदा रहे ।
शांति प्रेम की ज्योति अलौकिक
हरदम जलती यहाँ रहे।
सूखे बंजर सा हर मन है
है बिनती सरसाओ तुम ।।
व्याप्त भयंकर भय उर अंतर
डर को शीघ्र मिटाओ तुम ।।