राजनीति

नस्लभेद भेदभाव पर अंकुश लगाने समय की मुख्य माँग

हमारे सभ्य समाज में नस्लवाद भेदभाव का होना बेहद शर्मनाक बात है । इसलिए हम चाहते हैं कि नस्लवाद को समाप्त करने के लिए भरसक प्रयास अत्यावश्यक है । इसमें कोई संदेह नहीं कि समय-समय पर समूचे संसार में रंग भेदभाव पर अंगुली उठती रही है पर अफसोस अमेरिका जैसी विश्व महान् शक्ति को भी इस गंभीरतम मामले में जूझना पड़ रहा है । वहाँ भी आए दिन अंग्रेज युवा क्रोधित होकर अश्वेत लोगों पर हमला कर रहे हैं जिसकी एक ज्वलंत उदाहरण कुछ वर्ष पूर्व अकारण अमेरिकन पुलिस द्वारा बहुत ही बेरहमी से पिटाई कर एक अश्वेत नौजवान को मौत के घाट उतार देना है । यह सिलसिला लगातार जारी है । इन्हीं दिनों ऐसी ही घिनौनी घटना पुन: घटित हुई। निस्संदेह अमेरिकन वासियों ने एक अश्वेत बाराक ओबामा को अपने देश का राष्ट्रपति भी चुना । उन्होनें अपने कार्यकाल में इस विषय में अति प्रशंसनीय कदम उठाए। यह बात कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि अश्वेत होते हुए उन्होंने अत्याधिक लोकप्रियता प्राप्त की । समस्त वर्गों के लोगों को परस्पर मिलाया । उनके द्वारा करवाए कामों को सदैव याद रखा जाएगा और ठीक इसके विपरीत अभी-अभी पराजित दूसरी बार चुनाव लड़ रहे अमेरिकन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तो इस चिंतनीय विषय पर कभी भी गौर नहीं किया । बल्कि श्वेत नागरिकों को अश्वेत लोगों को हर मामले पर प्राथमिकता दी ।
       युग बदल चुका है पर अभी भी समस्त विश्व में कहीं न कहीं नस्लवाद पर अंकुश नहीं लग पाया। प्राचीन/ नवीनतम कविवर इस गंभीर विषय पर आधारित अपना काव्य सृजन कर रहे हैं । लोगों को रंग भेदभाव से ऊपर उठकर एक सच्चे इन्सान बन इन्सानियत की ओर अग्रसर चलने को प्रेरित कर रहै हैं । अंग्रेज प्रसिद्ध कवि विलियम ब्लेक ने अपनी सुप्रसिद्ध काव्य रचना” द लिटिल ब्लैक बाॅय ” में एक अश्वेत लड़के को अपने श्वेत साथी को नस्लवाद पर ही ध्यान केंद्रित करवाया । वाकई कवि विलियम ब्लेक ने बेहद शानदार /उत्कृष्ट  उदाहरणें देकर रंग भेदभाव को समाप्त करने की अपील की थी ।
       यहाँ दुख इस बात का है कि अभी भी सभ्य समाज में नस्लवाद पर टीका टिप्पणी वैसे की वैसे यथावत जारी है । अगर इस मामले में अमरीका देश में अत्याधिक अराजकता फैल रही है तो सोचिए अन्य देशों की स्थिति अत्यंत शोचनीय होना तो स्वाभाविक ही है । इसलिए अमेरिकन शासनकाल इस समय ऐसे चौराहे पर आ खड़ा हुआ है जो बहुत खतरनाक अव्यवस्थित हालत में है और तो और वहाँ के पुलिस प्रशासन में भी नस्लवाद घर कर चुका है । अश्वेत लोग भयभीत हैं । वहाँ की संसद पर करीब दो सौ साल के बाद हमला हुआ। गनीमत यह रही कि हमलावरों में अश्वेत लोगों की अपेक्षा श्वेत लोग शामिल थे । चूँकि पुलिस अधिकारी श्वेत थे तो बात आई गई हो गई।
           हमारे जीवन का कोई भी क्षेत्र हो वहाँ नस्लवाद के लिए कोई स्थान नहीं । विशेषत: खेल जगत में तो इसे कतई भी बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है । वस्तुत: ये खेल हमारे उदात्त जिंदगी के मूल्यों की अगुवाई करता है । इस समय हम जिस समाज में रह रहे हैं वहाँ नस्लवाद का होने की बात सोचना भी घृणित कार्य से कम नहीं है । इस बात का जिक्र मैं हालिए भारत-आस्ट्रलिया क्रिकेट लड़ी दौरान आस्ट्रेलियाई दर्शक व आस्ट्रेलियाई क्रिकेट खिलाड़ियों द्वारा हमारे मुल्क के खिलाड़यों पर की गई नस्लवाद टिप्पणी पर कर रहा हूँ । बेशक आस्ट्रेलियाई क्रिकेट बोर्ड ने इस बात पर अफसोस प्रकट किया है और माफी भी मांग ली है । यहाँ यह तो स्पष्ट ही हो गया है कि समूचे विश्व में विकसित देशों में अभी भी नस्लवाद को बढ़ावा देने वाले लोगों की कमी नहीं है । दर्शक दीर्घा से हमारे क्रिकेट खिलाड़ियों पर की गई नस्लवाद टिप्पणियाँ मन को कचोटतीं हैं। इस बात पर एक्शन लिया जाना अत्यावश्यक है अन्यथा खेल के मैदान भी नस्लवाद का अड्डा बन कर रह जाएंगे ।
         हमारे देश के बहुत से लोग रोज़गार की तलाश में विदेशी धरती पर जीवन-यापन कर रहे हैं । इनमें पंजाबियों की बहुलता है पर दुखद बात तो यह है कि इन्हें अपनी सुरक्षा हेतु अपनी ही पहचान छिपानी पड़ रही है । यह जीना भी कोई जीना है । निस्संदेह ऐसे कुत्सित प्रयास हमारे लोगों की उत्कृष्ट उन्नति से ईर्ष्या का दुष्परिणाम है । इस प्रकार की कुत्सित दिमागों को संगठित संरक्षण कदाचित नहीं मिलना चाहिए।
     गत अनेक वर्षों से असंख्य अश्वेत विशेषता ऐशियाई लोग विदेशी भी बन चुके हैं पर इतना कुछ होने पर भी वहाँ के कुछ लोग इन्हेंआत्मसात नहीं कर रहे और इन्हें फूटी आँख भी नहीं सुहाते। ऐसे तो नस्लवाद की नींव और मजबूत होती जाएगी।  यही लोग हमारे नागरिकों को पसन्द नहीं कर रहे हैं। ऐसी बात नहीं है कि हरेक श्वेत नागरिक की सोच अश्वेतों के प्रति घटिया है । हमारे लोगों से वे पूर्णत: सहानुभूतिपूर्वक व्यवहार करते हैं। परस्पर सौहार्दपूर्ण भातृत्व वाले संबंध हैं पर आश्चर्यजनक बात यह है कि विकसित देशों ने नस्लवाद समाप्त करने के अनेक प्रयास किए हैं । उनमें उन्होंने अत्याधिक सफलता भी अर्जित की है । पर कई पूर्वाग्राही श्वेत लोग इस दुष्चक्र से बाहर ही नहीं निकल रहे हैं । इसीलिए लगभग अधिकांश यूरोपीय देशों में रंग भेदभाव प्रचलित है । यह समस्त नागरिकों के लिए घातक सिद्ध हो सकता है ।
             अन्तत: यही कहा जा सकता है कि नस्लभेद को पूरी तरह खत्म करते हुए हम नये संसार का निर्माण करें । बेशक हमारे रंग-रूप, पहरावा , खानपान व भाषा अलग-अलग हैं पर हम सभी में एक जैसा रक्त बहता है जिसका रंग लाल है । फिर रंग भेदभाव क्यों ? प्रकृति का व्यवहार सबसे एक जैसा है । हम एक ही बात कह सकते हैं कि नस्लभेद का किसी भी समाज में पाया जाना बेहद अफसोसजनक है । यह दुखद  व शर्मनाक भी है । ऐसी शोचनीय सोच को संगठित संरक्षण कदाचित नहीं मिलना चाहिए। नस्लवाद कहीं और ज्यादा न पनपे इसके लिए योजनाबद्ध एहतियात की आवश्यकता है । ऐसी घृणित सोच को दूर करने के लिए सकारात्मक सामाजिक ट्रेनिंग दी जाए तो श्रेयस्कर होगा । ईर्ष्या के स्थान पर प्रतिस्पर्धात्मक मुकाबला हो । हमारे भारतवासियों ने विदेशों में जाकर अपनी प्रतिभा के बल पर बुलन्दियों के झण्डे गाड़ दिए हैं । इस कारण नस्लवाद का यह भी एक मुख्य कारण है । ऐसी सोच श्वेत नागरिकों की बेतुका है । श्वेत नागरिकों को भी प्रतिभावान बन कर नस्लवाद सोच से ऊपर उठना होगा । बेरोजगार व बेकार रहने से नस्लवाद टिप्पणी करने से अहित किसका होगा ? इससे नस्लवादी  लोग जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पिछड़ जाएंगे ।
— वीरेन्द्र शर्मा वात्स्यायन 

वीरेन्द्र शर्मा वात्स्यायन

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