लघुकथा

आत्मसम्मान

रीता को उसकी ननद ने बड़े उत्साह से फोन कर बताया कि भाभी मैंने अपने भतीजे और आपके बेटे का रिश्ता पक्का कर दिया है। लड़की इनके दूर की रिश्तेदार है। मैंने उन्हें जुबान दे दिया है। अब आप मना मत कीजिएगा। अच्छी बात है लेकिन क्या ननदोई जी और आपके सास ससुर को इस बात की जानकारी है? रीता ने पूछा नहीं भाभी! ये लोग नहीं चाहते हैं, मगर मैं लड़की और उसके परिवार से मिल चुकी हैं। लड़की पढ़ी लिखी और सुलझी है। भतीजे की जोड़ी खूब जमेगी। देखिए ननद जी! आपके ससुराल वाले नहीं चाहते। स्वाभाविक है कि वे उन लोगों को आपसे बेहतर समझते हैं। आपकी शादी को महज दो साल हुए हैं। ऐसे में आपने जुबान देकर गलत किया। यदि आपके पति ही इच्छुक नहीं हैं, तब हम अपनी सहमति बिल्कुल नहीं देंगे। शादी ब्याह गुड्डे गुड़ियों का खेल नहीं है। लेकिन भाभी इससे तो मेरी बेइज्जती हो जायेगी?मेरे स्वाभिमान आत्मसम्मान का क्या होगा? वाह हहहहहहह, आपको अपने स्वाभिमान, आत्मसम्मान की बड़ी चिंता है, एक बार भी आपने ससुराल वालों और अपने पति के बारे में भी नहीं सोचा, तो वो इसलिए कि आपको स्वाभिमान नहीं अभिमान है। जिसमें शामिल होकर हम आपके ससुराल वालों का अपमान किसी भी कीमत पर नहीं कर सकते। जुबान देने से पहले आपने किसी से कुछ भी नहीं कहा, न पूछा, न सलाह लिया। अब आप जानो, हम कुछ नहीं कर सकते। हमें अपने साथ साथ आपके ससुराल वालों के सम्मान, स्वाभिमान की भी चिंता है। रीता ने दो टूक जवाब दे दिया, तब उसकी ननद को अपनी ग़लती का अहसास हुआ। उसे महसूस हुआ कि भाभी के दो टूक बोल उसके आत्मसम्मान और स्वाभिमान की रक्षा के लिए ही हैं। उसने धीरे से सा..र.री भाभी कहकर फोन काट दिया। उसे लग रहा था कि भाभी ने उसे अपनी ही नज़रों में गिरने से बचा लिया।

*सुधीर श्रीवास्तव

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