जिंदगी…… बड़ी
जिंदगी ……बड़ी बेरहमी से सच दिखती है।
कितना भी…. बहलाते रहे खुद को ।
ऐसा नहीं है…???
ऐसा हो नहीं सकता …!!!!
जबकि ….. ऐसा ही था!!!?
साथ सच के बीते लम्हों की हर बात को
बड़ी खामोशी से बयां कर जाती है ।
जिंदगी बड़ी बेरहमी से सच दिखती है ।
जिंदगी सच को बड़ी बेरहमी से दिखती है।
झूठी उम्मीद को पाल-पाल कर।
लाख कोशिश करें कोई टूटी उम्मीदों को फिर से संभाल कर ।
जिंदगी उम्मीद से भी उसकी उम्मीद छीन लेती है।
जिंदगी बड़ी बेरहमी से सच दिखती है ।
जिंदगी सच को बड़ी बेरहमी से दिखती है।
अपना -अपना कहकर
जोड़ते रहे उमर भर छत और दीवारों को।
जिंदगी बड़ी बेरहमी से उन घरों के दरवाज़े गिरा कर निकल जाती हैं।
जिंदगी बड़ी बेरहमी से सच दिखती है ।
जिंदगी सच को बड़ी बेरहमी से दिखती है।
मतलब तक जो मतलब रखते रहे।
मतलब से चले और मतलब को साथ लाते रहे।
वक्त बदलते ही जिंदगी लबों से जिक्र तक हटाती है।
जिंदगी वक्त बदल- बदल कर
जिंदगी को सच का वह पाठ पढ़ती है।
जान कर भी हम सच को अनदेखा करते है।
शायद ..इसी लिए सच को इस तरह से सामने लाती है।
जिंदगी बड़ी बेरहमी से सच दिखती है ।
जिंदगी सच को बड़ी बेरहमी से दिखती है।
— प्रीति शर्मा “असीम”