गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

घर-घर बीच बिमारियां आ गई हैं पंजाब में।

सुलग रही चिंगारियां आ गई हैं पंजाब में।

हर गुलशन में फूल नहीं नागफनी है नागफनी,

कंटक हाथ सरदारियां आ गई हैं पंजाब में।

संयम का सभ्याचार सियासी ऋतुएं खा गईं,

झगड़े एंव दुश्वारियां आ गई हैं पंजाब में।

मानवता एंव भाईचारा साथ लहू के भीगे,

दानव बनकर आरियां आ गई हैं पंजाब में।

पंजाबियत की मेहनत उद्यमहीन बना दी है,

मुफ्तो मुफ्ती लारियां आ गई हैं पंजाब में।

दूध दहीं एंव माखन भी मसनूई होकर मिलता,

मदिरा में किलकारियां आ गई हैं पंजाब में।

कृतित्व साथ व्यक्तित्व भी कीमत पर हैं मिलते,

बुद्धि में लाचारियां आ गई हैं पंजाब में

परदेशों से होकर आईं लेकर यह विभचार,

अर्ध वस्त्र नारियां आ गई हैं पंजाब में।

बीज सृष्टि पैदा करता दृष्टि करे प्रकाश,

दोनों में बेकारियां आ गई हैं पंजाब में।

फिर भी बालम सच्चे बेटे ले आए खुशहाली

उन्नति में फुलकारियां आ गई हैं पंजाब में।

— बलविन्दर बालम

बलविन्दर ‘बालम’

ओंकार नगर, गुरदासपुर (पंजाब) मो. 98156 25409