कविता

माँ सम  कोई नहीं 

तुम्हारी विस्तार को कैसे दे शब्दों से लगाम। 

तुम तो हो अथाह अनंत नहीं हो कोई आम।

 माँ के बराबर कोई नहीं ढूँढ ले सारा जहान 

कैसे करूँ परिभाषित अभिराम सी तू कलाम।

हमें भाता सदा रहना, तुम्हारे वक्ष वलय में माँ, 

ठिकाना भी वहीं मेरा,तेरे ही बस निलय में माँ, 

हमारी रक्त धमनी में प्रवाहित तुम सदा रहती 

सुकूँ दिल को हमें मिलता,वहीं तेरे विलय में माँ।

जहाँ देखूँ वही तुम हो न होना ओझल नैनो से 

सलामत तुम सदा रहना न होये कुछ अनय मेरी माँ।

तुम्हारे सम नहीं कोई, देती निश्चल सा बस प्यार

 ना आए आँच कभी तुझ पर तू मेरी सबसे प्यारी माँ।

क्या लिखूं मां के बारे में उपहास उड़ाती लेखनी 

बड़ा आई लिखने उनको जो है तेरी खुद की जननी। 

— सविता सिंह मीरा 

सविता सिंह 'मीरा'

जन्म तिथि -23 सितंबर शिक्षा- स्नातकोत्तर साहित्यिक गतिविधियां - विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित व्यवसाय - निजी संस्थान में कार्यरत झारखंड जमशेदपुर संपर्क संख्या - 9430776517 ई - मेल - [email protected]