गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

आज क्या पुरहसीन मौसम है
हुस्न भी इस तरह कि हमदम है

एकदम-से बदल गया मौसम
पर जिसे ग़म रहा उसे ग़म है

इक पहेली कि इश्क़ करते क्यों
जब ज़ियादा सज़ा, मज़ा कम है

कौन-सा घाव भर नहीं सकता
प्यार इक रामबाण मरहम है

चाँदनी और आह से बनती
फूल पर यूँ न सुब्ह शबनम है

वो न सच्चा कभी हुआ आशिक़
जो न आशिक़मिज़ाज हरदम है

लग चुके हैं गुमान को झटके
पर सनम पर गुमान क़ायम है

— केशव शरण

केशव शरण

वाराणसी 9415295137