कविता

माँ बाप होने का फ़र्ज़

यह विडंबना नहीं तो और क्या है?जब हमारे मन में यह भाव होना चाहिए,मां या बाप की मृत्यु पर जबउनकी आत्मा की शान्ति के लिए हमें प्रार्थना करनी चाहिए,एक औलाद के कर्तव्य निभाने का संतोष के साथमन को सूकून का अहसास होना चाहिए,तब वास्तव में हम आप रोते हैं।और जब सचमुच रोना चाहिएतब तो हम खुद को बड़ा समझदार मान लेते हैं आखिर यह दिखावा हम क्यों और किसलिए करते हैं ?जब हमारे माँ या बाप दुनिया छोड़ जाते हैंतब हम ढाँढ़े मारकर क्यों रोते हैं?अपने माँ बाप के बिना जीवन न जी पाने काबेसुरा राग अलापने हैं,बेशर्मी से तरह तरह का ढोंग करते हैं।उस माँ या बाप के लिए जिसके जीते जीहमने उसका जीना दुश्वार कर रखा था ‌तब फिर आज यह नाटक आखिर क्यों करते हैं?आज जब माँ या बाप दुनिया से विदा हो गएतब कर्मकाण्ड, पिंडदान, ब्राह्मण भोज,उनके नाम पर ढेर सारे लोगों को भोजन कराते हैंकुछ दान पुण्य कर बड़ा दानवीर बनते हैं,एक सुंदर सी फोटो बनवा दीवार पर टांग देते हैंएक कृत्रिम फूलों की माला लटका देते हैं,और इससे हम अपने आपको लायकदारऔलाद होने का सबूत देते हैं,जबकि सच तो यह है कि हम आपखुद को ही सबसे ज्यादा गुमराह करते हैंऔर अपने कल के बारे में सोच कर रोते हैं,क्योंकि हम आप भी तो किसी के माँ बाप होते हैं।हमने औलाद होने का फ़र्ज़ निभाया ही नहींऔर आज ऐसा करके हम आपझूठ मूठ का पश्चाताप करते हैं,शायद पश्चाताप का नाटक करते हैं।मरने के बाद भी अपने माँ बाप कासुख चैन छीनने का ये कैसा घिनौना काम करते हैं?रीति रिवाज परंपरा के नाम पर हम आप सिर्फ दिखावा भर करते हैं,सच तो यह है कि अपनी खुशी छिपाने काखूबसूरत और सफल अभिनय करते हैं।अपवादों का उदाहरण मत दीजिए हूजूरऐसा कर अपने कुकृत्यों पर पर्दा मत डालिए।सिर्फ अपना उदाहरण देकर सीना ठोककर कहिएये सब भी जो हमने किया या कर रहे हैंमानिए न मानिए हम स्वार्थवश ही कर रहे हैंसमाज के तानों और उपहास से बचने के लिएनव प्रयोग कर दुनिया को राह दे रहे हैं।वैसे भी कौन सा हमें आज मरना है,शायद हमारे भाग्य में अमर होना ही लिखा हैमाँ बाप और हर मरने वाला सिर्फ एक बार मरता है,आज हमारे माँ या बाप मर गएइस पर इतना बहस क्यों कर रहे होदुनिया से जाते जाते माँ बाप हमें बड़ा सूकुन दे गए,हमने औलाद का फ़र्ज़ निभाया तो नहींपर वे माँ बाप होने का फ़र्ज़ पूरा करके ही दुनिया छोड़कर गए।

*सुधीर श्रीवास्तव

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