कविता

काश भगवान भी इक्क नया गोकुल बसाते

काश भगवान भी इक्क नया गोकुल बसाते
पर उसमें गोपियाँ ग्वाले कान्हां कहाँ से लाते
गऊ माता की जो करते थे दिन रात सेवा
स्वार्थ में डूबे सभी परोपकार अब कहाँ से पाते

गऊ माता आज भटक रही
दर दर की ठोकरे हैं खाती
देख दशा उस निरीह प्राणी की
आंख मेरी है भर आती

माता पिता का आज हो रहा तिरस्कार
नारी पर बहुत हो रहा अत्याचार
राजा बने हैं चोर लुटेरे
कैसे होगा जग का उद्धार

सुदामा जैसी दोस्ती कहाँ अब
पीठ पर हो रहे ख़ंजर से वार
ईमान सबने है बेच डाला
बन गए सब बेईमान मक्कार

बुराई हर तरफ़ सिर उठाये है खड़ी
अच्छाई कोने में चुपचाप है पड़ी
भीष्म पितामह मौन हैं कुछ बोलते नहीं
द्रौपदी पुकार रही चौराहे पर खड़ी

दुर्योधन दुशाशन ने उसको है घेरा
सुन नहीं रहा उसकी कोई पुकार
पाप बहुत बढ़ गया इस धरा पर
आकर पापियों का करो संहार

लाक्षागृह आज बन रहे शहर से दूर
सुनाई देती नहीं नारी की चीख पुकार
भीम कोई दूर तक नज़र नहीं आता
जो दुशाशन की दे जंघा फाड़

सत्ता के नशे में चूर हैं इंद्र की तरह सारे
घमंड को इनके कौन करेगा चूर
इस गोकुल रूपी संसार की रक्षा करने
गोवेर्धन को तुम उठाओगे जरूर

छुप छुप कर तुम क्यों देख रहे हो
कान्हां तुम जल्दी आ जाओ
कंस जो पग पग पर हैं बैठे
मुक्ति उनसे दिला जाओ

— रवींद्र कुमार शर्मा

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र

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