कविता

तुम ही बताओ क्या लिखूं मैं कैसे लिखूं

देखकर आजकल के हालात
बयॉं नहीं कर पाऊँ अपने जज्बात
कहीं पर मज़हब भारी पड़ रहा
कहीं पर हो रही जात पात
तुम ही बताओ क्या लिखूं मैं कैसे लिखूं

बेटियां क्यों नहीं सुरक्षित
क्यों नहीं कोई कुछ कर पाते
झूठे दिलासे दे देकर सभी को
आखिर कब तक रहोगे फुसलाते
तुम ही बताओ क्या लिखूं मैं कैसे लिखूं

भ्रष्टाचार का हर तरफ बोलबाला
मंदिरों के प्रशाद तक को नहीं छोड़ा
डुगडुगी जितनी भी बजा लो हर तरफ
पर बुरी तरह है इसने सबको निचोड़ा
तुम ही बताओ क्या लिखूं मैं कैसे लिखूं

जनसंख्या का हो रहा विस्फोट
दिनों दिन जमीन घटती जा रही
एक परिवार बंट गया कई हिस्सों में
छोटे छोटे टुकड़ों में बंटती जा रही
तुम ही बताओ क्या लिखूं मैं कैसे लिखूं

साधु भेष धर कर ठग रहे लोगों को
बाबाओं के पीछे लोग रहे भाग
राम रहीम आशा राम जैसे चले गए जेल
अंधभक्त लोग फिर भी नहीं रहे जाग
तुम ही बताओ क्या लिखूं मैं कैसे लिखूं

— रवींद्र कुमार शर्मा

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र

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