कविता

जैसी चाह वैसी राह

फिर से रूत सुहानी हो अगर……जब
सुरभित हो कण-कण, धरा का मधुबन,
अठखेलियां करें तितलियां, बहे मस्त पवन,
पक्षियों की हो चहचहाहट, भंवरों की गुंजन,
उपवन में खिले रंग-बिरंगे, सुंदर नव सुमन ।

फिर से रूत सुहानी हो अगर……जब
वृक्षों पर पंछियों का सजने लगे बसेरा,
आए हर दिन खुशियों का नया सवेरा,
“आनंद” हो चहुं दिस प्रेम रंग घनेरा,
अंतर मन में सद्गुणों का लगे डेरा ।

फिर से रूत सुहानी हो अगर……जब
प्रकृति संग प्रेम सौहार्द से चले हम,
वृक्षों की सुरक्षा रख रखाव करें हम,
विरासत को अपनी बचाए रखें हम,
संसाधनों का उचित प्रयोग करें हम ।

फिर से रूत सुहानी हो अगर……जब
अनावश्यक अंधाधुंध विघटन को रोके,
एक होकर हिंसा, अराजकता को टोके,
गलत कर्मों को निडर बन, ज्ञान से रोके,
सच्चाई की आवाज से अशुभता को टोके ।

फिर से रूत सुहानी हो अगर……जब
प्रण हमारा सच्चा संकल्पित हो अगर,
रंग लाएगा आत्मविश्वास सवरेगीं डगर,
कर्म करना पड़ेगा सही दिशा में मगर,
चाहते हो फिर रूत सुहानी हो सदा अगर ।

— मोनिका डागा “आनंद”

मोनिका डागा 'आनंद'

चेन्नई, तमिलनाडु

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