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परीक्षा पर चर्चा

कहते है कि जब मन में किसी बात को लेकर दुःख, तनाव आदि आता है तो हमारे धैर्य की परीक्षा शुरू हो जाती है । हम देखते है कि इस दुनियाँ में ऐसा कोई इंसान पैदा नहीं हुआ जिसके जीवन में दर्द या दुःख नहीं आया हो । हम अतीत में जाते हैं तो देखते है कि सत्यवादी राजा हरीशचंद्र, भगवान श्री राम,पांडव पुत्र और भगवान श्री कृष्ण के माँ-बाप आदि – आदि । मानव जीवन में दर्द आना भी बहुत जरूरी है अगर यह नहीं आया तो इंसान अपने आपको इंसान नहीं अँहकार से हैवान बन सकता है।भगवान भी संतुलन बनाए रखने के लिए हर इंसान को उसके कर्मों के अनुसार दुःख दर्द देता है।उस समय इंसान की परीक्षा होती है कि वो उसे किस रूप में लेता है। हम अगर अपने से नीचे वाले आदमी को देखेंगे तो हमारा दर्द हमको कम महसूस होगा और अपने से ऊपर वाले व्यक्ति से तुलना करेंगे तो हमारा दुःख बहुत बड़ा लगेगा। जीवन में कभी-कभी ऐसी परिस्तिथि आती है कि चारों और अन्धकार नज़र आता है , कंहि कोई आशा की किरण नज़र नहीं आती है । उस समय कौन साथ देता है और कौन मुँह फेरता है,उसकी पहचान भी होती है।उस समय अगर कोई आकर कंधे पर हाथ रखकर यह बात कहता है कि तुम क्यों चिंता करते हो,में हुँ ना।उस दुखी इंसान को लगता है कि धरती पर साक्षात कोई भगवान आया है।मेरी डूबती नया को बचा रहा है।आज जब भी जीवन में दुःख आए उस समय सिर पकड़ कर मत बैठो।शांति से उसका समाधान सोचो।मन में हम यही सोचे कि जब हम पैदा हुए तो हम रोए और जाएँगे तो दुनियाँ या घर वाले रोएँगे।इंसान के जन्म से लेकर मृत्यु तक दर्द का रिश्ता रहता है फिर दुःख क्यों करूँ । हम इसी तरह देखते है कि परीक्षा का नाम आते ही परीक्षा देने वाले कितने – कितने ही सुनकर तनाव में आ जाते है । वह कितने- कितने विधार्थीयो के विचार परीक्षा की दिनांक नज़दीक आने के साथ ही तनाव चिंता आदि में आते है । वह आगे के लिए विधार्थी बढ़ता जाता है । मेरे जीवन का घटना प्रसंग दिवंगत शासन श्री मुनि श्री पृथ्वीराजजी स्वामी ( श्रीडुंगरगढ़ ) मुझे बात के प्रसंग में बोलते थे कि प्रदीप धार्मिक परीक्षा आ रही है तो क्या तनाव में हो तो मैं उनको कहता नहीं मुनिवर तो पूछते क्यो? तो मैं जवाब देता कि मुझे आपके द्वारा सीखायी हुई वर्ष भर की पढ़ाई पर विश्वास है तो तनाव का प्रश्न ही कहाँ से आये क्योकि मुनिवर हमको परीक्षा होती उसके बाद तुरन्त ही आगे के लिए नियमित क्रम से बिना रुके पढ़ाना शुरू कर देते थे । वह उनको हमारे पर विश्वास था लेकिन उनके मन में हम कितने विश्वास पर खरे उतरे इसका सही से कोई पैमाना नहीं है क्योकि उन्होंने मुझे धार्मिक की 19 परीक्षा की तैयारी करवाई व मैंने परीक्षा दी । मुझे याद है जब तक हमारे मन में नकल क्या होती है आदि आदि बात भी मन में आती नहीं थी क्योकि हमारी पढ़ाई मजबूत रहती थी । परीक्षा आयी परीक्षा दी उसका परिणाम आया उससे पहले अगली पढ़ाई शुरू और उस समय प्रमाण- पत्र आदि लेने के मेरे भाव ही नहीं रहते थे । सिर्फ और सिर्फ धार्मिक ज्ञान प्राप्ति का लक्ष्य रहता था । मुनिवर मेरे को बोलते थे कि प्रदीप यह चिन्तन जीवन में कभी भी छोड़ना नहीं व अपनी मंजिल को प्राप्त करना है , मुनिवर मुझे आगे बोले कि हाँ! हो सकता है तुम्हारे को सहयोग कोई दे नहीं लेकिन लक्ष्य से पीछे नहीं होना है । खैर! मुनिवर तो अभी नहीं रहे लेकिन उनकी सभी शिक्षा मुझे आज भी हिम्मत देती है ।
अपनी पढ़ाई अच्छी है अपने आप पर विश्वास है तो हमको कोई भी परिक्षा आए दे तो तनाव आयेगा ही नहीं । हम इसी तरह जीवन के अनेक प्रसंग में यह देख सकते है । समय और भाग्य दोनों परिवर्तनशील है इसलिए अच्छे समय में अभिमान और कठिन समय में चिंता न करें दोनों जरूर बदलेंगे । आकस्मिक परीक्षा का नाम सुनते ही बचपन में घबरा जाते थे इसलिए हडबड़ाहट में फ़ेल हो जाते थे और जैसा की प्राध्यापक महोदय ने प्रश्नपत्र थमा दिया , जिसमें सिर्फ़ एक काला बिन्दु शायद सभी विद्यार्थी की तरह हम भी अपनी शक्ती उस बिन्दु के उत्तर को खोजने में लगा रहे जबकि 99% ख़ाली सफ़ेद पेपर पर ध्यान नही पर आज हम गहराई से सोचे तो यह सफ़ेद पेपर और कुछ नही हमारी ज़िंदगी हैं और वह छोटा सा काला बिन्दु समस्या जो ज़िंदगी का एक छोटा सा हिस्सा होती हैं, लेकिन हम अपना पूरा ध्यान इसी पर लगा देते हैं , देखा जाए तो हर समस्या का समधान हैं , दिन रात परेशान रहना या चिंता कभी कोई पैसों का रोना रोता रहता है,कोई दूसरे की छोटी सी गलती को अपने दिमाग में रखे रखता है।हम क्यों उस भगवान के अपार आशीर्वाद को भुल जाते ना कभी उसको धन्यवाद देते हैं , देंगे कैसे ? क्योकि हम तो उस पेपर के एक काले बिन्दु की तरह समस्या पर अटक गए हैं जबकि ज़िंदगी की उन 99% चीजे की तरफ सचमुच हमारे जीवन को अच्छा बनाती हैं। हम क्यों ना अपने मित्रों सम्बन्धियों की ग़लतियों को नज़रअन्दाज़ कर अपने रिश्तों को टूटने से बचा ले । हमारी ज़िंदगी में आए कोई से हर आकस्मिक टेस्ट का मुक़ाबला कर आगे बढ़ते रहे । हर आदमी अपनी-अपनी क्षमता व सही से योग्यतानुसार शिक्षा-दीक्षा पूरी करता है वह उसे जीवन की मुख्य धारा में प्रवेश , एक नया परिवेश मिलता है । उसे उसकी समीक्षा मन ही मन करनी पड़ती है वह एक प्रकार से यह उसके लिए नयी परीक्षा होती है । इस नव परीक्षा में अपने आपको समन्वित करने में उसे कई तरह की स्थितियों से सामना करना पड़ सकता है । एक नाविक की परीक्षा तभी है जब वह तूफ़ान में भी वो कश्ती किनारे लगा ले ।व्यक्ति की परीक्षा तभी है जब संकट की घड़ियों को भी वो धीरता से खुद को पार लगा दे । हम मुश्किलों को न मानें व्यवधान ,वो ही तो है हमारे आने वाली हर चुनौती का आह्वान है। हमे संघर्ष की हर घड़ी कुछ सिखाती है , दिक़्क़तों को पार लगाने की कला बताती है , काँटों में चलना सिखाती है , हमें तराशती है ,हमे अनुभवों व आत्मविश्वास से भर जाती है बस !फिर क्या है विवेक और धैर्य का समागम प्रतिकूल को भी अनुकूल बनायेगा , हम कल पर न रखें, कार्य करते जायें हर कदम पर सफलता का फूल खिलेगा। बस कुछ करना है – इस अटल सिद्धान्त पर रुकें न कभी कदम हमारे , हम फिर अड़िग बढ़ते रहेंगे । यही हमारे लिए काम्य है ।

— प्रदीप छाजेड़

प्रदीप छाजेड़

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