सामाजिक

बदलते समय में माता-पिता की उपेक्षा, कारण और चिंताएँ

परिवार की संरचना में परिवर्तन: पहले संयुक्त परिवार प्रथा थी, जहाँ कई पीढ़ियाँ साथ रहती थीं। अब एकल परिवार (nuclear family) का चलन बढ़ गया है, जिससे माता-पिता अकेले पड़ जाते हैं।
आर्थिक दबाव,आज की पीढ़ी पर आर्थिक दबाव, करियर की दौड़ और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएँ इतनी हावी हैं कि वे अपने माता-पिता के लिए समय और संसाधन नहीं निकाल पाते।
पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव,स्वतंत्रता और व्यक्तिगत जीवन की चाहत ने पारिवारिक मूल्यों को पीछे छोड़ दिया है।
संस्कारों का क्षरण, बच्चों को बचपन से ही परिवार, बड़ों के सम्मान और कर्तव्यों के बारे में सिखाना कम हो गया है।
मूल्य शिक्षा की कमी, स्कूल और समाज में नैतिक शिक्षा का अभाव भी एक बड़ा कारण है।
माता-पिता की मनोदशा,भावनात्मक उपेक्षा, माता-पिता को जब अपने बच्चों से अपेक्षित प्रेम, सम्मान और साथ नहीं मिलता, तो वे अंदर से टूटने लगते हैं।
अकेलापन और अवसाद,यह उपेक्षा उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर कर देती है।
क्या युवा अपनी संस्कृति और कर्तव्य से विमुख हो रहे हैं?
सच्चाई का दूसरा पहलू
हर युवा ऐसा नहीं है। कई लोग आज भी अपने माता-पिता का आदर करते हैं, उनकी सेवा करते हैं।
लेकिन, यह भी सच है कि सामाजिक परिवर्तन और व्यक्तिगत प्राथमिकताओं ने सामूहिक जिम्मेदारी की भावना को कमजोर किया है।
समाधान और सुझाव,,संस्कारों की पुनर्स्थापना,बच्चों को बचपन से ही माता-पिता के महत्व और कर्तव्यों के बारे में सिखाएँ।
संवाद बढ़ाएँ,परिवार में खुला संवाद और भावनाओं की अभिव्यक्ति बहुत जरूरी है।
समाज की भूमिका,समाज को भी ऐसे परिवारों की मदद के लिए आगे आना चाहिए जहाँ माता-पिता उपेक्षित हैं।
माता-पिता का ऋण चुकाना संभव नहीं, लेकिन उनका सम्मान, सेवा और देखभाल करना हमारा कर्तव्य है। समय चाहे जितना बदल जाए, हमारी संस्कृति की जड़ें इन्हीं मूल्यों में हैं। यदि हम इन्हें भूल गए, तो न केवल परिवार, बल्कि समाज भी कमजोर हो जाएगा।
अपने कर्तव्यों को समझें और माता-पिता को वह स्थान दें, जिसके वे सच्चे हकदार हैं।

माँ-बाप की छाँव,

माँ की ममता, पिता का साया,
इनसे सुंदर जग में क्या पाया।
बचपन की गलियों में थामे हाथ,
उनके बिना सूना है हर एक साथ।
माँ की गोदी, सुख का बिस्तर,
पिता की उँगली, जीवन का सफर।
हर आँधी-तूफान में दी हिम्मत,
हर मुश्किल में बने रहे शक्ति का समंदर।
आज समय की रफ्तार है तेज़,
रिश्तों में आ गई हैं,
कहीं-कहीं खामोशी की सेज़।
फिर भी याद रखो, ये वही दो चेहरे हैं,
जिनकी दुआओं में बसी है तुम्हारी हर खुशी की लहरें हैं।
मत भूलो उनका त्याग, उनकी ममता का रंग,
उनके बिना अधूरा है जीवन का हर संग।
चलो, आज प्रण लें,
माँ-बाप को देंगे वही स्नेह,
जैसा उन्होंने हमें दिया,
हर हाल में, हर उम्र में,
उनकी सेवा में ही सच्चा धर्म है जिया।

डॉ. मुश्ताक अहमद शाह

डॉ. मुश्ताक़ अहमद शाह

पिता का नाम: अशफ़ाक़ अहमद शाह जन्मतिथि: 24 जून जन्मस्थान: ग्राम बलड़ी, तहसील हरसूद, जिला खंडवा, मध्य प्रदेश कर्मभूमि: हरदा, मध्य प्रदेश स्थायी पता: मगरधा, जिला हरदा, पिन 461335 संपर्क: मोबाइल: 9993901625 ईमेल: dr.m.a.shaholo2@gmail.com शैक्षिक योग्यता एवं व्यवसाय शिक्षा,B.N.Y.S.बैचलर ऑफ़ नेचुरोपैथी एंड योगिक साइंस. बी.कॉम, एम.कॉम बी.एड. फार्मासिस्ट आयुर्वेद रत्न, सी.सी.एच. व्यवसाय: फार्मासिस्ट, भाषाई दक्षता एवं रुचियाँ भाषाएँ, हिंदी, उर्दू, अंग्रेज़ी रुचियाँ, गीत, ग़ज़ल एवं सामयिक लेखन अध्ययन एवं ज्ञानार्जन साहित्यिक परिवेश में रहना वालिद (पिता) से प्रेरित होकर ग़ज़ल लेखन पूर्व पद एवं सामाजिक योगदान, पूर्व प्राचार्य, ज्ञानदीप हाई स्कूल, मगरधा पूर्व प्रधान पाठक, उर्दू माध्यमिक शाला, बलड़ी ग्रामीण विकास विस्तार अधिकारी, बलड़ी कम्युनिटी हेल्थ वर्कर, मगरधा साहित्यिक यात्रा लेखन का अनुभव: 30 वर्षों से निरंतर लेखन प्रकाशित रचनाएँ: 2000+ कविताएँ, ग़ज़लें, सामयिक लेख प्रकाशन, निरन्तर, द ग्राम टू डे, दी वूमंस एक्सप्रेस, एजुकेशनल समाचार पत्र (पटना), संस्कार धनी (जबलपुर),जबलपुर दर्पण, सुबह प्रकाश , दैनिक दोपहर,संस्कार न्यूज,नई रोशनी समाचार पत्र,परिवहन विशेष,समाचार पत्र, घटती घटना समाचार पत्र,कोल फील्ड मिरर (पश्चिम बंगाल), अनोख तीर (हरदा), दक्सिन समाचार पत्र, नगसर संवाद, नगर कथा साप्ताहिक (इटारसी) दैनिक भास्कर, नवदुनिया, चौथा संसार, दैनिक जागरण, मंथन (बुरहानपुर), कोरकू देशम (टिमरनी) में स्थायी कॉलम अन्य कई पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएँ प्रकाशित प्रकाशित पुस्तकें एवं साझा संग्रह साझा संग्रह (प्रमुख), मधुमालती, कोविड, काव्य ज्योति, जहाँ न पहुँचे रवि, दोहा ज्योति, गुलसितां, 21वीं सदी के 11 कवि, काव्य दर्पण, जहाँ न पहुँचे कवि (रवीना प्रकाशन) उर्विल, स्वर्णाभ, अमल तास, गुलमोहर, मेरी क़लम से, मेरी अनुभूति, मेरी अभिव्यक्ति, बेटियां, कोहिनूर, कविता बोलती है, हिंदी हैं हम, क़लम का कमाल, शब्द मेरे, तिरंगा ऊंचा रहे हमारा (मधुशाला प्रकाशन) अल्फ़ाज़ शब्दों का पिटारा, तहरीरें कुछ सुलझी कुछ न अनसुलझी (जील इन फिक्स पब्लिकेशन) व्यक्तिगत ग़ज़ल संग्रह: तुम भुलाये क्यों नहीं जाते तेरी नाराज़गी और मेरी ग़ज़लें तेरा इंतज़ार आज भी है (नवीनतम) पाँच नए ग़ज़ल संग्रह प्रकाशनाधीन सम्मान एवं पुरस्कार साहित्यिक योगदान के लिए अनेक सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त पाठकों का स्नेह, साहित्यिक मंचों से मान्यता मुश्ताक़ अहमद शाह जी का साहित्यिक और सामाजिक योगदान न केवल मध्य प्रदेश, बल्कि पूरे हिंदी-उर्दू साहित्य जगत के लिए गर्व का विषय है। आपकी लेखनी ने समाज को संवेदनशीलता, प्रेम और मानवीय मूल्यों से जोड़ा है। आपके द्वारा रचित ग़ज़लें और कविताएँ आज भी पाठकों के मन को छूती हैं और साहित्य को नई दिशा देती हैं।

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