ग़ज़ल : पेड़ के फलदार बनने की कहानी रस भरी है
पेड़ के फलदार बनने की कहानी रस भरी है
शाख़ लेकिन मौसमों के हर सितम को झेलती है
सैकड़ों बातें इधर हैं उस तरफ बस खामुशी है
कैसे सपने देखती हूँ मैं ये क्या दीवानगी है
गर तुम्हारी बात पर हँसता है अब तक ये ज़माना
फिर समझ लेना अधूरी आज भी दीवानगी है
हो कभी शिकवे-गिले, तकरार, झगड़े भी कभी हों
रूठ कर ख़ामोश हो जाना तेरी आदत बुरी है
झूठ को सच, रात को दिन, उम्र भर कहते रहे, हम
तीरगी तो तीरगी है, रौशनी तो रौशनी है
नम हवाओं में तेरा एह्सास ज़िंदा है अभी तक
तेरी ख़ुशबू के तआकुब में भटकना ज़िंदगी है
रंग में दुनिया के आखिरकार हम भी ढल गए हैं
आइना भी अजनबी है अब जहाँ भी अजनबी है
अब मैं क्या अपना तआरुफ़ तुम को दूं ‘श्रद्धा’ बताओ
ज़िंदगी ग़ज़लें मेरी, पहचान मेरी शायरी है
बहुत अच्छी ग़ज़ल !