कविता प्रवीण माटी 13/03/2020 जी ले जीवन अचेतना से निकलकर भविष्य की ओर झाँकती हुई नवस्फुटित कोंपलें जीवन की सार्थकता को परिभाषित कर रही है नर होकर Read More
कविता प्रवीण माटी 13/03/2020 सवाल परछाइयों के शहर में क्या मैं खुद को ढूंढ पाऊंगा ? एक दिल लेकर आया हूं तेरे पास क्या Read More
कविता प्रवीण माटी 02/02/202002/02/2020 जीवन मिलो की दूरियां हैं दिल की खबरें आज भी पहुंचती हैं यह इश्क है जनाब किसी के कहने से कहा Read More
कविता प्रवीण माटी 05/01/202005/01/2020 फुटपाथ जिंदगी के उतार-चढ़ाव दो पल खुशी,कुछ तनाव कठिन समय मौत का भय दो वक्त की रोटी काश! पास होती उसके Read More
कविता प्रवीण माटी 27/12/2019 संकोच किताबें खरिद तो ली उठाने का मन नहीं करता किस संकोच में आजकल पल-पल मरता वक्त की सुई आवाज़ Read More
कविता प्रवीण माटी 27/12/2019 जल जल ही जीवन है कहते कहते कंठ सूखा बर्बाद किया पल-पल हर रोज बुद्धि की बात न कर वो Read More
कविता प्रवीण माटी 27/12/2019 भुजंग भुजंग लता पर चिपटा ला तो दो कोई चिमटा काट खायेगा जहरीला है देख इसका रंग नीला है आओ ! Read More
कविता प्रवीण माटी 15/11/2019 आखिर सूखे हुए तने से जब निकलती है कोंपलें मौसम के मिजाज से बढ़ती है निकलते हैं ,हरे-हरे पत्ते फैल Read More
कविता प्रवीण माटी 15/11/2019 मौन मोबाइल की स्क्रीन पर सारे कैद हैं कैदियों की तादाद बहुत ज्यादा है पहाड़ों की तलहटी पर रहने वाला एक Read More
कविता प्रवीण माटी 05/07/2019 षड्यंत्र सत्ता का षड्यंत्र जारी है अहम एक बड़ी बिमारी है हम तो रह गए भोले-भाले आँखों की पट्टी अभी उतारी Read More