स्मृति के पंख – 15
गढ़ीकपूरा में एक संत रहा करते थे। उनकी रिहायश ऊपर छत पर कमरा में थी। नीचे सेवादार मौजूद रहता था।
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Read Moreअब दुकान की हालत फिर से ठीक होने लगी। कुछ दिन बाद एक रात को बरकत (यह सकीना की बड़ी
Read Moreउन सब लड़कों के अक्सर बाहर से मुलाकाती भी आते रहते और घर से पार्सल भी आते रहते। लेकिन इतने
Read Moreरात को मुझे बुखार हो गया। मैंने वार्डन को बुलाकर कहा, लेकिन उसने कोई परवाह नहीं की। सुबह मैंने सुखनजी
Read Moreमुझे तो कोई तकलीफ न थी, लेकिन शाम को जब भ्राताजी को आते देखता सर पर आटा उठाये, तो बड़ी
Read Moreजब सोना 20-22 रू0 तोला था, पोंड की सरकारी कीमत थी 15 रुपये। अंग्रेज लोगोें की कोठी पर चैकीदार रात
Read Moreहमारे साथ के मकान वाले भी कपूर थे। लाला हरीचन्द और गोकुलचन्द। लेकिन हमारे विचारों में बड़ा अन्तर था। वो
Read Moreकुछ अरसा बाद गढ़ी कपूरा में भाई श्रीराम (बहन गोरज के पति) का कोई खास काम भी न था। बहन
Read Moreमेरे दिल में भी बड़ा उत्साह था। बी.आर. के शाना बशाना काम करूं। बी.आर. ने मुझे कहा जैसी जरूरत होगी,
Read Moreअब दुकान का काम मैं पूरी तरह कर लेता। सुबह की ड्यूटी मेरी थी। सुबह दुकान खोलना तकरीबन 5 बजे।
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