कविता

बचपन की रामलीला

आज भी याद आता है दशहरे के दौरान नाना के घर जाना, बहाना तो होता था बस रामलीला देखना। बड़ा मजा आता था मामा नाना के साथ गाँव की रामलीला में, तब आज की तरह सब हाइटेक नहीं था पेट्रोमैक्स की रौशनी में चौधरी नाना के दरवाजे पर अधिकांश कलाकार गाँव के हल्की ठंड के […]

लघुकथा

उठना नहीं है?

जिस दिन मैं सुबह देर से उठता हू्ँ उस दिन अनायास ही माँ की याद आ ही जाती है।क्योंकि माँ की ही तरह मेरी भी आदत सुबह जल्दी उठने की है। फिर भी किसी दिन यदि किसी कारणवश मैं नहीं उठा तो माँ आकर जगाती और यह कहना कभी नहीं भूलती थी कि उठना नहीं […]

सामाजिक

सहानुभूति

सहानुभूति शब्द मन में आते ही एक भाव उत्पन्न होता है बेचारगी।परंतु ऐसा नहीं है।सहानुभूति एक भाव है,संबल है।जिसको दर्शाने मात्र से हम किसी के लिये अपना समर्थन प्रकट करते हैं।इसे प्रकट करने का भाव इंगित करता है कि हम सामने वाले की लाचारी पर तरस ख रहे हैं या उसका हौसला बढ़ा रहे हैं। […]

सामाजिक

हमारी खुशियाँ हमारे हाथ

आज के इस व्यस्तम और भागदौड़ भरी जिंदगी में खुश रह पाना सबसे कठिन काम है।हर इंसान भाग रहा है।आज लोगों के पास खुद के और परिवार तक के लिए समय निकालना बहुत मुश्किल हो रहा है। ऐसे में हमें खुश रहने के लिए छोटे छोटे पल चुराने की जरूरत है,छोटी किंतु सकारात्मक बातों,कृत्यों में […]

कविता

कर्तव्य

जब तक हमारे मन में सकारात्मक भाव नहीं होंगे तब तक हम कौन सा कर्तव्य निभायेंगे? जब तक अपने मन में कर्तव्यबोध नहीं लायेंगे कैसे अपना निज कर्तव्य निभायेंगे? आप क्या, क्यों, कैसे सोचते रहिए हम तो माँ,बाप,समाज के प्रति कैसे भी हँसी खुशी अपना निज कर्तव्य निभायेंगे, बाद में पछताने से बच जायेंगे तभी […]

कविता

नयन

मूक रहकर भी बहुत कुछ कहते है, सुख दुःख ,हर्ष विषाद के भाव भी सहते है। हंसते मुस्कराते, रोते भी हैं अंतर्मन के भाव खोलते भी हैं। बहुत कुछ कहकर, जाने कितना कुछ अनकहे रह जाते, नयनों की अपनी भाषा है, पर शायद हमें ही इन्हें पढ़ने का सलीका नहीं आता, तभी तो हम शिकायतें […]

कविता

संकल्प

आखिरकार पुरखों का देखा सपना पूरा हो रहा है, सौभाग्य से सच होते वे सपने देखने का अवसर हमें मिल रहा है, मन में उल्लास उमड़ रहा है। पर अब हमारी भी कुछ तो जिम्मेदारी है, जब राम जी को मंदिर में बैठाने की चल रही तैयारी है। हमें भी अपने मन के रावण को […]

कविता

प्रार्थना

हे प्रभु!नमन मेरा स्वीकार करें इस अज्ञानी का भी उद्धार करें । तेरी पूजा आराधना का कुछ ज्ञान नहीं मुझे, बस शीश झुकाना आता है बस इतने से ही स्वीकार करो। न मैं जानू पूजा आरती न कर पाऊं वंदन, बस आता है प्रभु मुझको चरणों में तेरे सिर झुका कर करता हूं अभिनंदन । […]

कविता

प्रीत की रीत

प्रीत की रीत कहाँ निभाते हो? प्रीत के ना पर पीठ में छुरा घोंपनें में भी न शर्माते हो। प्रीत से डर बहुत लगने लगा है, प्रीत के नाम पर जान ले जाते हो। प्रीत के नाम पर छल करते हो और मुस्कराते हो। प्रीत की रीत का अब बंद करो खेल साहब प्रीत के […]

कविता

क्या लिखूँ?

अब ऐसे माहौल में क्या लिखें डर लगता है, अपने आप से इस समाज से समाज के लोगों से हर तरफ अनीति, अत्याचार का जाल बढ़ रहा है आज इंसान डर डर कर जी रहा है,मर रहा है । ऐसे में सच कौन लिखेगा? जब इंसान इंसान नहीं रहा भेड़िया बनने की कोशिश कर रहा […]