आत्मकथा – दो नम्बर का आदमी (कड़ी 54)
मैं दूसरे दिन प्रातः नई दिल्ली स्टेशन पर उतर गया। सांसद श्री वीरेन्द्र सिंह जी मुझे प्लेटफार्म पर ही मिल
Read Moreमैं दूसरे दिन प्रातः नई दिल्ली स्टेशन पर उतर गया। सांसद श्री वीरेन्द्र सिंह जी मुझे प्लेटफार्म पर ही मिल
Read More1994 में जनवरी माह में मैं एक पुत्री का पिता बना। मेरे एक पुत्र था ही। एक पुत्री और हो
Read Moreउन दिनों मैं पुस्तक लेखन पर अधिक ध्यान दे रहा था। घर पर कोई कार्य था नहीं, इसलिए प्रातः जल्दी
Read Moreआजकल कई आलोचक इस बात पर चुटकी ले रहे हैं कि पिछले एक साल में मोदी जी ने बहुत विदेश
Read More1993 में ही मैंने एक बार ताइक्वांडो सीखने का निश्चय किया। मेरे कार्यालय के एक कर्मचारी श्री संजीत शेखर का
Read More1993 का वर्ष हमारे लिए लगभग सामान्य रहा। मैं आर्थिक चिन्ताओं से मुक्त था और अपनी पत्नी तथा 2-3 साल
Read Moreवाराणसी में मेरा संघ से सम्पर्क प्रारम्भ में ही हो गया था। वास्तव में मैं सबसे पहले गोदौलिया के संघ
Read Moreरातभर आनन्द से सोने के बाद हम सुबह जल्दी उठकर गाड़ी पकड़ने भागे। ठीक समय पर गाड़ी आ गयी और
Read Moreउसी वर्ष अर्थात् सन् 1992 की गर्मियों में नदेसर (वाराणसी) में हमारी कालोनी से सटी हुई राजा नदेसर की कोठी
Read Moreसन् 1992 के अप्रैल माह में श्रीमतीजी की मम्मीजी ने अपनी सभी बेटियों और दामादों के साथ वैष्णो देवी की
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