प्रेम पथिक
पुराने घर की किवाड़ को आज भी इंतजार है तुम्हारा किसी रोज आयोगी तुम हवा के शीतल झोंके की तरह
Read Moreपुराने घर की किवाड़ को आज भी इंतजार है तुम्हारा किसी रोज आयोगी तुम हवा के शीतल झोंके की तरह
Read Moreयह जो तुम्हारे होठों पर काला तिल है, यही तो मेरा कातिल है, तिरछी नजर से देख कर जो मुस्कुराते
Read Moreकैसा है ए देश महान ? उसकी ही पूजा होती है बाँट दिया जो हिन्दुस्तान बिना खड्ग बिन ढाल मिली
Read Moreपहले तन मन की आजादी थी सुबह निकल घरों से घूमा करते थे मस्त वादियों में दाना चुगकर आ जाया
Read Moreतुम्हारी दोस्ती एक अहसास है जो मेरे जिन्दा रहने की आस है तुम से दूर रह कर बस सास लेता
Read More*शिल्प : पहली और तीसरी पंक्तियों में 12 मात्राएँ यानि 2211222और दूसरी पंक्ति में 10 मात्राएँ यानि 211222 होती हैं.
Read Moreहूँ अज्ञानी … अपने अल्पज्ञान का मुझे भान है । अपने सीखने की लगन पर मुझको भी अभिमान है ॥
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